नई दिल्ली: हिंदुस्तान की सियासत का एक महाकाव्य हैं अटल बिहारी वाजपेयी. इस चेहरे में हिंदुस्तान की सियासत का कई दशकों का इतिहास सिमटा हुआ है. फिलहाल वाजपेयी जी दिल्ली के एम्स अस्पताल में भर्ती है. उनकी हालत नाजुक बताई जा रही है. 93 साल के वाजपेयी लंबे वक्त से बीमार हैं और 2009 से व्हीलचेयर पर हैं.
ऐसा था वाजपेयी का शुरुआती सफ़र
वाजपेयी जी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर के एक निम्न मध्यमवर्ग परिवार में हुआ था. अटल के पिता का नाम कृष्ण बिहारी वाजपेयी और मां का नाम कृष्णा देवी हैं. वाजपेयी की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा ग्वालियर के ही विक्टोरिया ( अब लक्ष्मीबाई ) कॉलेज और कानपुर के डीएवी कॉलेज में हुई. उन्होंने राजनीतिक विज्ञान में स्नातकोत्तर किया और पत्रकारिता में अपना करियर शुरु किया. उन्होंने राष्ट्र धर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन का संपादन किया.
अटलजी का राजनीतिक सफर
भारतीय राजनीति के क्षितिज पर अटल उदय की कहानी शुरु होती है सन् 1951 से. जब श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अटल बिहारी वाजपेयी की वाणी में बसी सरस्वती को महसूस किया और जनसंघ का स्थापक सदस्य बनाया. वाजपेयी की राजनीतिक यात्रा की शुरुआत हुई भारतीय जनसंघ की स्थापना के साथ और जनसंघ के ही टिकट पर पहली बार संसद पहुंचे अटल बिहारी वाजपेयी.
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1957 के चुनाव में अटल जी ने उत्तर प्रदेश के बलरामपुर संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ा और जीता. संसद में युवा अटल के विचार सुनकर सत्तासीन सरकार के नुमाइंदे भी उनकी जबांदानी के मुरीद हो गए. ये तक कहा जाता है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल से कहा था कि ये लड़का एक दिन भारत का प्रधानमंत्री जरूर बनेगा.
अटल जी की सियासत का सफर एक नई जिम्मेदारी के साथ आगे बढ़ रहा था. 1968 से लेकर 1973 तक अटल बिहारी वाजयपेयी भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष भी रहे. 1971 में अटलजी ने अपना चुनाव क्षेत्र भी बदला और उत्तर प्रदेश के बलरामपुर की जगह अपने जन्मस्थान यानी मध्यप्रदेश के ग्वालियर को चुना.
1977 में जनता पार्टी सरकार में उन्हें विदेश मंत्री बनाया गया. इस दौरान संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन में उन्होंने हिंदी में भाषण दिया और वो इसे अपने जीवन का अब तक का सबसे सुखद क्षण बताते हैं. 1980 में वो बीजेपी के संस्थापक सदस्य रहे. 1980 से 1986 तक वो बीजेपी के अध्यक्ष रहे और इस दौरान वो बीजेपी संसदीय दल के नेता भी रहे.
सांसद से प्रधानमंत्री
अटल बिहारी वाजपेयी अब तक नौ बार लोकसभा के लिए चुने गए हैं. दूसरी लोकसभा से तेरहवीं लोकसभा तक. बीच में कुछ लोकसभाओं से उनकी अनुपस्थिति रही. ख़ासतौर से 1984 में जब वो ग्वालियर में कांग्रेस के माधवराव सिंधिया के हाथों पराजित हो गए थे.1962 से 1967 और 1986 में वो राज्यसभा के सदस्य भी रहे.16 मई 1996 को वो पहली बार प्रधानमंत्री बने. लेकिन लोकसभा में बहुमत साबित न कर पाने की वजह से 31 मई 1996 को उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा. इसके बाद 1998 तक वो लोकसभा में विपक्ष के नेता रहे.
1998 के आमचुनावों में सहयोगी पार्टियों के साथ उन्होंने लोकसभा में अपने गठबंधन का बहुमत सिद्ध किया और इस तरह एक बार फिर प्रधानमंत्री बने. लेकिन एआईएडीएमके द्वारा गठबंधन से समर्थन वापस ले लेने के बाद उनकी सरकार गिर गई और एक बार फिर आम चुनाव हुए.1999 में हुए चुनाव राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के साझा घोषणापत्र पर लड़े गए और इन चुनावों में वाजपेयी के नेतृत्व को एक प्रमुख मुद्दा बनाया गया. गठबंधन को बहुमत हासिल हुआ और वाजपेयी ने एक बार फिर प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली.