भोपाल गैस कांड: उस रात का दर्द लेकर कैसे जी रहे हैं आज भी लोग

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 2 और 3 दिसंबर 1984 की रात को एक ऐसी घटना घटी, जिसके हर किसी को झकझोर के रख दिया था. भोपाल के लिए ये रात काली रात बनकर आई. इस रात को यूनिय कार्बाइड के प्लांट से जहरीली गैस मिथाइन आइसो साइनाइड का रिसाव हुआ था. उस समत पूरा शहर चैन की नींद सो रहा था, लेकिन इस गैस ने हजारों लोगों को सुबह होने तक नींद से जागने ही नहीं दिया. वहीं अब इस त्रासदी के 34 साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन अब भी इसके जख्म हरे से ही नजर आते हैं.

नई पीढ़ी पर असर

भोपाल त्रासदी से निकली यूनियन कार्बाइड गैस ने उस रात तो लोगों की जिंदगी छीन ली, लेकिन इस जहरीली गैस का असर नई पीढ़ी पर भी देखने को मिल रहा है. जहां इस गैस ने कई मांओं की कोख उजाड़ दी, तो कहीं उनके बच्चे विकलांग पैदा हो रहे हैं. यूनियन कार्बाउड गैस ने न सिर्फ 2 और 3 दिसंबर 1984 की रात को ही अपना असर दिखाते हुए हजारों लोगों की जिंदगी उनसे छीन ली. बल्कि, आने वाली पीढ़ियों को भी अपना शिकार बना लिया.

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अमन और विकास कर लेते हैं स्कूल ड्रेस पहनकर तसल्ली

भोपाल के ही रहने वाले दो बच्चे हैं अमन और विकास. ये दोनों बचपन से ही विकलांग हैं. न तो ये बोल सकते हैं और न ही चल सकते हैं न खड़े हो सकते हैं और न ही बैठ सकते हैं. ये दोनों बच्चे स्कूल जाना चाहते हैं, लेकिन नहीं जा पाते. ऐसे में ये दोनों ही स्कूल ड्रेस पहनकर ही अपने आप को तसल्ली देते हैं. वहीं इनके पिता संजय यादव का कहना है कि 34 साल पहले हुए गैस त्रासदी की मार उनके दोनों बेटे अब तक झेल रहे हैं.

350 टन जहरीला कचरा अब भी

गैस पीड़ितों के लिए काम करने वाले सतीनाथ सारंगी के मुताबिक, यूनियन कार्बाइड कारखाने अब भी भी लगभग 350 टन जहरीना कचरा है. जमीन में दफन 8 से 10 हजार टन जहरीले कचरे से जल और मिट्टी दोनों ही दूषित हो गए हैं, जिसके चलते बीमारियों से आए दिन गैस पीड़ित दम तोड़ रहे हैं.

मुआवजे के नाम पर मजाक?

इस गैस त्रासदी ने हजारों परिवारों से उनकी जिंदगी छिनी थी, तो वहीं उनको भविष्य में भी इसकी मार झेलनी पड़ रही है. सरकार ने मुआवजे का ऐलान किया था, लेकिन सतीनाथ का आरोप है कि भले ही सरकार में कोई भी आया हो, लेकिन इनके साथ इंसाफ किसी ने नहीं किया. यहां तक कि 94 फीसदी पीड़ितों को महज 25 हजार का ही मुआवजा मिला, जो ऊंच के मुंह में जीरा साबित हो रहा है. ऐसे में आप समझ सकते हैं कि ये त्रासदी भोपाल के लोगों के लिए किसी प्रलय से कम नहीं थी.

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