मायावती का कांग्रेस को डबल झटका अखिलेश के लिए अलर्ट भी है !

मध्य प्रदेश में कांग्रेस से गठबंधन के कयासों के बीच सभी सीटों पर अकेले लड़ने का ऐलान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के बागी अजीत जोगी को समर्थन देकर बसपा प्रमुख ने सबको चौंका दिया है, उत्तर प्रदेश में अखिलेश बहले कुछ कहें बसपा सुप्रीमो ने अभी तक गठबंधन पर बात साफ़ नहीं की है.

लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी ने कांग्रेस को दोहरा झटका दिया है. उम्मीद थी कि मायावती मध्य प्रदेश में कांग्रेस से गठबंधन करेंगी मगर उनकी पार्टी वहां अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान करके 22 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी. वहीं दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ में उन्होंने कांग्रेस के बागी नेता अजित जोगी की ‘जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जोगी)’ के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की घोषणा की है. बसपा गठबंधन के मुख्यमंत्री उम्मीदवार अजित जोगी का समर्थन करेगी.बसपा सुप्रीमो मायावती के इन बड़े राजनीतिक फैसलों पर समाजवादी पार्टी का रुख तो जाहिर नहीं हुआ है,मगर गठबंधन को लेकर यह उसके लिए अलर्ट माना जा सकता है.

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कर्नाटक में कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में सोनिया गांधी ने जिस तरह मायावती निकटता जताई थी उसके खूब राजनीतिक निहितार्थ निकाले गए. माना गया कि यह इस साल के अंत में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में गठबंधन की ख्वाहिश के चलते हुआ है. कांग्रेस के नेताओं की तरफ से इस बात के संकेत भी दिए गये कि मध्य प्रदेश में बसपा के का वोट बैंक अपने साथ जोड़कर वह लड़ाई को मजबूत करना चाहती है. मध्य प्रदेश में बसपा का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा है. पार्टी वहां 1990 से विधानसभा का चुनाव लड़ रही है. 1998 के चुनाव में तो बसपा ने 170 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे और 11 सीटों पर जीत हासिल की. इन 170 सीटों पर 11. 39 फीसदी वोट उसे मिले. पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा ने साढ़े छह फीसदी वोट मध्य प्रदेश में हासिल किए और उसके चार विधायक जीते. गुरूवार को जारी सूची में इन चार में से तीन विधायकों के अलावा 19 और सीटों पर उम्मीदवार तय कर दिए गए. पार्टी के तरफ से साफ़ ऐलान कर दिया गया कि वह सभी 230 सीटों पर लड़ेगी और वो भी अकेले. यानि गठबंधन की कोई संभावना नहीं है.

BSP supremo Mayawati joins Ajit Jogi

छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस और बसपा के बीच चुनाव पूर्व गठबंधन के कयास लगाए जा रहे थे. लेकिन मायावती ने गुरुवार को जो धमाका किया उससे बड़े-बड़े राजनीतिक पंडित भी सकते में आ गए. लखनऊ में बसपा सुप्रीमो अजीत जोगी के साथ मीडिया से मुखातिब हुईं और गठबंधन का ऐलान किया. अजीत जोगी कांग्रेस से अलग अपनी पार्टी बनाकर राजनीति कर रहे हैं. दोनों नेताओं ने लिखित में संयुक्त बयान भी जारी किया. मायावती ने पत्रकारों से कहा कि छत्तीसगढ़ की अस्सी में से 35 पर बसपा तो शेष 55 सीटों पर अजित जोगी की पार्टी चुनाव लड़ेगी. गठबंधन की तरफ से जोगी मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी होंगे. कांग्रेस से गठबंधन के कयासों को लेकर उन्होंने कहा कि मीडिया में तरह-तरह की खबरें सामने आ रही हैं, लेकिन वह जो बता रही हैं यही सच है, बाकी अफवाह है.

बसपा प्रमुख ने कहा, “हमारा साफतौर पर मानना है कि बसपा उसी पार्टी के साथ समझौता करेगी जो दलित, पिछड़े एवं आदिवासी लोगों के लिए काम करती हो ओर उनके कल्याण में जुटी हुई हो. हम यह भी देखेंगे कि उस पार्टी की सोच दलितों को लेकर कैसी है.” बसपा प्रमुख ने कहा, “छत्तीसगढ़ में हम अजित जोगी के साथ इसीलिए गठबंधन कर रहे हैं, क्योंकि वे वहां के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं और उन्हें सरकार चलाने का भी अनुभव है. उनके कार्यो को देखते हुए पार्टी ने उनके साथ मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला किया है.”

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मायावती की इस राजनीति से उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी से उसके संभावित गठबंधन पर भी चर्चा गरमा गयी है. राजनीतिक गलियारों में उनकी सम्मानजनक सीटों के नाम पर सपा को परोक्ष चेतावनी के मतलब निकाले जाने लगे हैं. गौरतलब है कि हालिया उपचुनावों में जीत के बाद सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव मायावती के साथ गठबंधन को लेकर बहुत उत्साहित हैं. जबकि बसपा प्रमुख द्वारा अभी तक तस्वीर साफ़ नहीं की गयी है. बल्कि वह दो बार मीडिया के बीच आकर जोरदार धमकी दे चुकी हैं कि बसपा उसी सूरत में गठबंधन करेगी जब उसे सम्मानजनक सीटें बंटवारे में दी जाएंगी. अगर सम्मानजनक सीटें नहीं मिलीं तो बसपा अकेले चुनाव लड़ेगी. हालांकि मायावती के सख्त रुख पर अखिलेश ने हर बार झुक कर ही जवाब दिया है. उन्होंने कहा है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा को उत्तर प्रदेश से साफ़ करना उनका उद्देश्य है. ऐसे में अगर कुछ सीटें गठबंधन में कुर्बान करनीं भी पड़ीं तो वह पीछे नहीं हटेंगे.

सपा से गठबंधन को लेकर मायावती ने ना तो पहले तस्वीर साफ़ की है और ना ही आज इस सम्बन्ध में कुछ कहा. लेकिन जिस तरह से उन्होंने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ को लेकर फैसला लिया है उसको द्देखते हुए राजनीति के जानकार कहने लगें हैं कि सपा को बहुत संभल कर चलने की जरूरत है. अखिलेश यादव इसे अलर्ट के तौर पर जरूर लेंगे और कांग्रेस के साथ अन्य छोटे दलों से दोस्ती की गुंजाइश भी तलाश रहे होंगे, ऐसा ना मानने का कोई कारण नहीं है.

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