कांग्रेस का अर्श से फर्श तक का सफर

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दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं। आम आदमी पार्टी को जहां 62 सीटों का बंपर बहुमत मिला तो वहीं बीजेपी ने 8 सीटों पर कब्जा किया। लेकिन दिल्ली की गद्दी पर 15 साल तर राज करने वाली कांग्रेस की इस चुनाव में शर्मनाक स्थिति रही। दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला और 63 सीटों पर जमानत भी जब्त हुई।

1993 में दिल्ली में पहली बार विधानसभा चुनाव हुए। बीजेपी पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई और मुख्यमंत्री की कुर्सी पर पार्टी के दिग्गज नेता मदनलाल खुराना विराजमान हुए। बीजेपी ने 2 साल 86 दिन के बाद 1996 में खुराना की जगह जाट नेता साहेब सिंह वर्मा को मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन बचे हुए कार्यकाल को वो भी पूरा नहीं कर सके. विधानसभा चुनाव से महज कुछ महीने पहले बीजेपी ने अपने कद्दावर नेता सुषमा स्वराज को मुख्यमंत्री बनाने का दांव चला. कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव से ऐन पहले दिल्ली प्रदेश की कमान शीला दीक्षित को देकर राजधानी की सियासी जंग को दिलचस्प बना दिया.

1998 का दिल्ली विधानसभा चुनाव

1998 का दिल्ली विधानसभा चुनाव सुषमा स्वराज और शीला दीक्षित के बीच हुआ। सुषमा स्वराज पर शीला दीक्षित भारी पड़ीं। जिससे 1998 में बीजेपी को सत्ता से बाहर करके कांग्रेस सत्ता में आ गई. तत्कालीन मुख्यमंत्री सुषमा स्वराज अपनी सीट बचाने में कामयाब रहीं। जिसके साथ बीजेपी 15 सीट पर सिमट गई। कांग्रेस ने 52 सीटें जीतकर अपनी सरकार बनाई।

2003 में फिर कांग्रेस राज

साल 2003 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को फिर जबरदस्त जीत मिली थी. उस चुनाव में कांग्रेस ने 47 सीटें हासिल कर एक बार फिर शीला दीक्ष‍ित के नेतृत्व में सरकार बनाई थी. दिसंबर 2003 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 48.13 फीसदी वोट हासिल किए थे. दूसरे स्थान पर रही भारतीय जनता पार्टी ने 20 सीटें और करीब 35 फीसदी वोट हासिल किए थे.

2008 में कांग्रेस ने लगाई हैट्रिक

साल 2008 के चुनाव में शीला दीक्ष‍ित के नेतृत्व में लगातार तीसरी बार जीत के साथ कांग्रेस ने सरकार बनाई थी. कांग्रेस को कुल 43 सीटें हासिल हुई थीं. कांग्रेस को करीब 40 फीसदी वोट मिले थे.

2013 में पलटी दिल्ली की सियासत

2013 में कॉमनवेल्थ घोटाले की गूंजी और अन्ना आंदोलन के बाद दिल्ली की राजनीति में आम आदमी पार्टी का उदय हुआ। विधानसभा के नतीजे त्रिशंकु रहे. भारतीय जनता पार्टी को 31, आम आदमी पार्टी को 28 और कांग्रेस को महज 8 सीटें मिलीं.

बीजेपी को करीब 33 फीसदी, AAP को करीब 29 फीसदी और कांग्रेस को करीब 24 फीसदी वोट मिले. आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई, हालांकि यह सरकार महज 49 दिन चल सकी. इसके बाद राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया.

2015 में आई AAP की आंधी

साल 2015 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए सबसे खराब प्रदर्शन वाले वर्षों में था. कांग्रेस को मिला शून्य यानी एक भी सीट नहीं. कांग्रेस के दिग्गज नेता भी हार गए. आम आदमी पार्टी को 70 में से 67 सीटें हासिल हुईं.

अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में फिर AAP की सरकार बनी. आम आदमी पार्टी को करीब 54 फीसदी, बीजेपी को 32 फीसदी और कांग्रेस को महज 9.7 फीसदी वोट मिले. यानी दो साल के भीतर ही कांग्रेस के वोट प्रतिशत 24 से घटकर 10 पर आ गए.

2020 में भी नहीं खुला खाता

2020 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 62 सीटें हासिल की तो बीजेपी 8 सीटें मिलीं। लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस ने कुछ खास सक्रियता नहीं दिखाई।जिसका परिणाम था रहा कि दिल्ली में कांग्रेस के हाथ एक भी सीट नहीं लगी और 63 सीटों पर तो जमानत तक जब्त हो गई।

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