पारीक जी के लिए तो शून्य होने जैसा है अटल का जाना 

नई दिल्ली। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का निधन यूं भारतीय राजनीति के एक युग का अवसान है और अनगिनत लोगों के लिए व्यक्तिगत क्षति जैसा है. मगर कुछ चेहरे ऐसे हैं जिनके लिए अटल जी का जाना खुद के शून्य हो जाना जैसा है. इन्हीं में शामिल है शिव कुमार पारीक जो साए की तरह अटल जी के साथ रहे. बड़ी-बड़ी मूंछों वाले लंबे-चौड़े पारिक जी अटल जी के हनुमान कहे जाते थे.पारीक जी जयपुर के मूल निवासी हैं.

अटल बिहारी वाजपेयी के जीवन में पारिक जी क्या थे, इसे सिर्फ एक घटना से समझा जा है पिछले लोकसभा चुनाव में राजनाथ सिंह लखनऊ से उम्मीदवार थे वैसे तो राजनाथ खुद उस वक़्त भाजपा अध्यक्ष थे मगर लखनऊ अटल जी की परम्परागत सीट थी. राजनाथ को अच्छी तरह पता था कि जीतना है तो मतदाताओं को यह सन्देश देना ही पडेगा कि अटल जी का आशीर्वाद उनके साथ है. बीमारी के चलते अटल जी  नहीं जा सकता था ऐसे में शिव कुमार पारीक को राजनाथ के साथ लखनऊ भेजा गया. पारीक जी को साथ लेकर राजनाथ ने प्रेस कांफ्रेंस की, उनकी मौजूदगी अटल जी की इच्छा मानी गयी और चुनाव आसानी से निकल गया.

शिव कुमार पारीक बिहारी वाजपेयी से नाता कोई पांच दशक का रहा. बात 1968 की है अटल जी का कद भारतीय राजनीति में दिनों दिन बढ़ता जा रहा था. पंडित दीनदयाल उपाध्याय की रहस्यमय हालात में हुई मौत से जनसंघ हिला हुआ था. ऐसे में किसी ने सलाह दी कि अटल जी को कोई मजबूत सहयोगी उपलब्ध करवाया जाना चाहिएं जो दिन रात उनके साथ रहे. नाना जी देशमुख ने संघ से जुड़े अधिवक्ता पारिक जी का नाम सुझाया. लंबी-चौड़ी कद काठी और दबंग छवि वाले पारिक जी उन दिनों सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस कर रहे थे. सब कुछ छोड़कर अटल जी के साथ रहने का प्रस्ताव उन्होंने स्वीकार तो कर लिया मगर एक शर्त पर कि इसके बदले वो लेंगे कुछ नहीं.

बात का धनी होना और कर्तव्य परायणता किसे कहते हैं, पारीक जी इसका जीता जागता प्रमाण हैं. पिछले पचास साल में उन्होंने ना सर्दी-गर्मी देखी और ना ही उनकी सेहत पर इस बात का फर्क पड़ा कि अटल जी सत्ता में हैं या नहीं. सुबह नौ बजे से लेकर अटल जी के विश्राम में जाने तक वो साए की तरह उनके साथ रहे. वैसे तो पारीक जी निजी सहयोगी के तौर पर देश के इस महान नेता के साथ जुड़े थे मगर अटल जी से उनके जुड़ाव की व्याख्या मुश्किल है.

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जिस तरह देश के सर्वाधिक उदारमना नेता वाजपेयी की ख्याति असंदिग्ध है, उसी तरह वाजपेयी के अनन्य सहयोगी के तौर पर शिव कुमार पारीक की भूमिका को सत्ता के गलियारों और राजनीतिक हलकों में सराहा जाता है. सत्ता के इतने बड़े केंद्र में बैठकर भी उन्होंने कभी अपने या अपने परिवार वालों के लिए कोई पद नहीं मांगा। माना जाता है कि इधर आठ वर्ष से तो वाजपेयी जी लगभग अचेतन अवस्था में हैं. उनके पुत्र दिनेश पारीक बताते हैं- बाबू जी पर इसका कोई फर्क नहीं पड़ा. वो अपना पांच दशक पुराना संकल्प निभाने रोज सुबह अटल जी के बंगले पर सही समय पहुंचे और वापस आए. उनके लिए अटल जी कर्तव्य के प्रतीक और अटल जी के लिए बाबू जी विश्वास के प्रतीक रहे.

सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि पारीक जी के जीवन में कितना बड़ा शून्य आया है. भाजपा के तमाम बड़े -छोटे नेता अटल जी के अवसान को अपने आदर्श, अपने अभिभावक या फिर अपने मार्गदर्शक का अनंत में विलीन होना बताएं मगर पारीक जी के लिए तो जीवन ही ठहर गया. जिन अटल के नाम पर उनकी सुबह होती थी और रात तक की व्यस्तता. काल ने उनसे वही अटल छीन लिए. बताया जा रहा है कि पारीक जी अपने नेता पर किताब लिखने का मन बना रहे हैं.

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जाहिर है इस किताब के जरिये अटल जी को और ज्यादा करीब से जानने-समझने का मौक़ा लोगों को मिलेगा. अपना कर्तव्य निभाते हुए पारीक जी पिछले चौबीस घंटों में टेलीविजन स्क्रीन्स पर देखे गए हैं. वैसे ही हाथ बांधे अटल जी के शव के सिरहाने खड़े दिखे जैसा उन्हें अटल जी के पीछे खड़े देखा जाता था. वही बड़ी-बड़ी मूंछ वाले पारीक जी, जो अटल के निजी सचिव भी थे, दोस्त भी हमदर्द और हमराज भी. जिन्होंने लोकसभा में दो सीटों वाली पार्टी कोदेश की सत्ता में आते देखा. नेहरू की उस भविष्यवाणी को भी सच होते देखा कि अटल जी एक दिन देश के पीएम बनेंगे.

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