आर्थिक तंगी से जूझ रही थीं दुर्गा खोटे, फिर हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री में ऐसे पाई पहचान

हिन्दी सिनेमा जगत में अच्छा खासा नाम कमाने के लिए हर किसी को संघर्ष करना पड़ता है. लेकिन इसमें जीवन के उस दौर पर आगे बढ़ना जब आप पूरी तरह से टूट चुके हो ये सबसे बड़ी निडरता की बात है. आज हम आपको बताने जा रहे हैं एक ऐसी ही अभिनेत्री दुर्गा खोटे के बारे में खास.

बताते चलें कि आज दुर्गा खोटे की 14 जनवरी को 113वीं बर्थ ऐनिवर्सरी है. ये हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री की तमाम बड़ी अभिनेत्रियों में से एक हैं. फिल्म ‘मुगले-आजम’ से दुर्गा खोटे ने सबका दिल जीत लिया था. जिनके इस फिल्म में शानदार किरदार को कोई भी भूल नहीं सकता.

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इनका जीवन बेहद संघर्ष भरा रहा. दुर्गा खोटे की शादी 18 साल की उम्र में कर दी गई. इनके दो बेटे भी हुए. लेकिन 20 साल तक पहुंचते इनके पति भी गुजर गए. जिसके बाद इन्हें आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा.

दुर्गा खोटे उस जमाने की अभिनेत्री हैं जब फिल्मों में औरतो के किरदार भी पुरुष ही निभाया करते थे. ऐसे में उनका फिल्मों का जाना घर-परिवार में किसी को रास ना आया और उन्हें काफी आलोचनाओं का शिकार होना पड़ा.

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पति की मौत के बाद ससुराल में रहते हुए दुर्गा को लगने लगा था कि इन्हें भी कुछ काम करना चाहिए. पढ़ी-लिखी होने के कारण इन्होंने सबसे पहले ट्यूशन पढ़ाना शुरु किया. इस दौरान इन्हें फिल्म फरेबी जाल में काम करने का ऑफर मिला। पैसों की तंगी के चलते दुर्गा ने इस ऑफर को हां कह दी।

फिल्म में महज इनका किरदार दस मिनट तक का था, फिल्म के कॉन्टेंट की इन्हें कोई जानकारी नहीं थी. फिल्म जब दर्शकों ने देखी तो खराब कॉन्टेंट के कारण दुर्गा खोटे की काफी आलोचना हुई.

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इसके बाद खोटे ने बॉलीवुड से किनारा करना ही ठीक समझा लेकिन उसके बाद ‘अयोध्येचा राजा’ में उन्हें वी, शांताराम द्वार मुख्य पात्र ‘तारामती’ का किरदार निभाने का प्रस्ताव मिला. फिल्म में पहले इन्हें लोगों से बहुत कुछ सुनना पड़ा था लेकिन उसके बाद वही लोग इनकी तारीफ करने लगे थे। इस तरह इन्हे इंडस्ट्री में अलग पहचान बनाई। इस पिल्म के बाद दुर्गा खोटे रातों रात स्टार बन गई थी. बता दें कि फिल्म मुगल-ए-आजम में इनका जोधाबाई का किरदार एक यादगार किरदार है.

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दुर्गा खोटे ने लगभग 50 साल फिल्मी दुनिया में काम किया और करीब 200 फिल्में की. उन्हें दादासाहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया. दुर्गा खोटे ने ज्यादातर मां के किरदार को सिल्वर स्क्रीन पर निभाया. उनकी आख़िरी फिल्म कर्ज सन 1980 में आई. इसके बाद बिगड़ते स्वास्थ्य के कारण उन्होंने फिल्मी दुनिया को अलविदा कह दिया. 1991 में दुर्गा खोटे ने दुनिया को अलविदा कह दिया.

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