पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के रोड शो के दौरान बवाल के बाद विवाद बढ़ता जा रहा है। रोड शो में हिंसा के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने भाजपा पर समाज सुधारक ईश्वर चन्द्र विद्यासागर की मूर्ति तोड़ने का आरोप लगाया है। इस मामले के तूल पकड़ते ही मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने ट्विटर की डीपी में अब विद्यासागर की फोटो लगा ली है। ममता ने कहा है कि मोदी और शाह गुण्डे हैं।
ममता बनर्जी ने विद्यासागर की मूर्ति तोड़े जाने के खिलाफ बृहस्पतिवार को एक विरोध रैली की घोषणा भी की है। बवाल के बाद ममता बनर्जी ने कहा था, ‘भाजपा के लोग इतने असभ्य हैं कि उन्होंने विद्यासागर की प्रतिमा तोड़ दी। वे सभी बाहरी लोग हैं। भाजपा मतदान वाले दिन के लिए उन्हें लाई है।’ ममता ने अमित शाह को ‘गुण्डा’ बताया। ममता ने एक रैली में कहा कि ये सब दो गुण्डों शाह व मोदी का काम है।
विवाद के बाद विद्यासागर की प्रतिमा गिराने के मुद्दे पर टीएमसी ने भाजपा की शिकायत चुनाव आयोग से करने के लिए मुलाकात का समय मांगा है। इस बीच आज पश्चिम बंगाल में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की होने वाली रैली को रद्द कर दिया गया है। रैली रद्द करने का कारण अभी बताया नहीं गया है।
उधर विद्यासागर कॉलेज के प्रधानाचार्य गौतम कुंडु ने भाजपा समर्थकों पर कई गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा, ‘भाजपा समर्थक पार्टी का झंडा लिए हमारे दफ्तर के अंदर घुस आए और हमारे साथ बदसलूकी करने लगे। उन्होंने कागज फाड़ दिये, कार्यालय और संघ के कक्षों में तोड़फोड़ की और जाते वक्त विद्यासागर की आदमकद प्रतिमा तोड़ दी।’
कौन थे ईश्वर चन्द्र विद्यासागर
दरअसल ईश्वर चन्द्र विद्यासागर बंगाल के पुनर्जागरण के स्तम्भों में से एक थे। वो एक समाज सुधारक थे, जिन्होंने भारत की महिलाओं की जिंदगी बेहतर बनाने का प्रयास किया और ब्रिटिश सरकार से विधवा पुनर्विवाह अधिनियम को पारित करने के लिए जोर दिया था। ईश्वर चन्द्र विद्यासागर पेशे से एक शिक्षक थे, वह भारतीय समाज के कई वर्गों के द्वारा लड़कियों पर किये गए अन्यायों से बहुत दुखी थे।
करमाटांड़ विद्यासागर की कर्मभूमि थी, यह उच्चकोटि के विद्वान थे, उनकी विद्वानता की वजह से ही इन्हें ‘विद्यसागर’ की उपाधि दी गई थी, यह नारी शिक्षा के समर्थक थे, उनके प्रयास से ही कोलकाता समेत बंगाल के कई स्थानों महिलाओं के लिए स्कूल खोले गए थे।
इन्हीं के प्रयासों से 1856 ई. में विधवा-पुनर्विवाह कानून पारित हुआ था, इन्होंने अपने इकलौते पुत्र का विवाह एक विधवा से ही किया था, इन्होंने बाल विवाह का भी विरोध किया।