नीतीश से मोदी की पसंद बनने तक का सफर, जानिए प्रशांत किशोर से जुड़ी दस खास बातें

प्रशांत किशोर की असली पहचान साल 2014 के लोकसभा चुनाव से बनी. इस चुनाव में उन्होंने भाजपा के लिए काम किया और भाजपा की प्रचंड जीत के लिए प्रशांत किशोर की चुनावी रणनीति को श्रेय दिया गया.

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फोटो साभारः Google

नई दिल्ली: चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने राजनीति में एंट्री लेकर अपने सियासी सफर की शुरुआत बिहार से कर दी है. प्रशांत किशोर आज पटना में जेडीयू की राज्य कार्यकारिणी की बैठक में नीतीश कुमार की मौजूदगी में जनता दल यूनाइटेड (JDU) में विधिवत रूप से शामिल हो गए. आपको बता दें कि पिछले हफ्ते ही प्रशांत किशोर ने हैदराबाद में एक कार्यक्रम में कहा था कि वह 2019 में किसी भी पार्टी के लिए रणनीति नहीं बनाएंगे. खबर आई थी कि प्रशांत किशोर सक्रिय सियासी पारी शुरू कर सकते हैं, हालांकि उन्होंने खुद बाद में इनकार कर दिया था, लेकिन आज ट्वीट कर उन्होंने जेडीयू में शामिल होने की जानकारी दी है.

आपको बता दें, 2014 लोकसभा चुनाव में भाजपा को ऐतिहासिक जीत दिलाकर मोदी की पसंद बन चुके प्रशांत किशोर. पीके के रूप में भी फेमस हैं. किशोर 2014 के चुनाव के सियासी गलियारों ने खासा चर्चित कर दिया. उन्होंने ही 2014 के चुनाव प्रचार में बीजेपी के प्रचार को ‘मोदी लहर’ में बदल दिया था. वहीं प्रशांत की मुख्य भूमिका 2015 में बिहार में महागठबंधन को बड़ी जीत दिलाने में भी रही थी. आइये जानते हैं प्रशांत किशोर से जुड़ी 10 खास बातें.

  • प्रशांत किशोर का जन्म साल 1977 में बिहार के बक्सर जिले में हुआ. प्रशांत के पिता डॉ. श्रीकांत पांडे एक चिकित्सक हैं और बक्सर में मेडिकल सुपरिटेंडेंट भी रह चुके हैं और उनकी मां इंदिरा गृहणी हैं.
  • प्रशांत किशोर के बड़े भाई अजय किशोर पटना में रहते हैं और उनका खुद का कारोबार है. प्रशांत किशोर की दो बहनें भी हैं. पिता डॉ. श्रीकांत पांडे सरकारी सेवा से रिटायर होने के बाद बक्सर में ही अपनी क्लिनिक चलाते हैं.
  • प्रशांत ने अपनी शुरुआती पढ़ाई-लिखाई बिहार में ही की और बाद में वे इंजीनियरिंग करने हैदराबाद चले गए. यहां तकनीकी शिक्षा हासिल की. इसके बाद उन्होंने यूनिसेफ (UNICEF) में नौकरी ज्वाइन की और ब्रांडिंग का जिम्मा संभाला.

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  • यूनिसेफ के साथ काम करने के बाद साल 2011 में प्रशांत भारत लौटे और गुजरात के चर्चित आयोजन ‘वाइब्रैंट गुजरात’ से जुड़े. इस आयोजन की ब्रांडिंग आदि का जिम्मा खुद संभाला और यह बेहद सफल रहा.
  • कहा जाता है कि ‘वाइब्रैंट गुजरात’ के आयोजन के दौरान ही उनकी राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से जान-पहचान हुई और फिर प्रशांत किशोर ने मोदी के लिए काम करना शुरू किया.
  • प्रशांत को असली पहचान साल 2014 के लोकसभा चुनाव से मिली. इस चुनाव में उन्होंने बीजेपी के लिए काम किया और उसकी प्रचंड जीत के लिए प्रशांत किशोर की चुनावी रणनीति को श्रेय दिया गया.
  • बताया जाता है कि 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी के चुनाव प्रचार के दो अहम अभियान, ‘चाय पर चर्चा’ और ‘थ्री-डी नरेंद्र मोदी’ के पीछे प्रशांत किशोर का ही दिमाग था. ये दोनों अभियान काफी सफल रहे और बीजेपी सत्ता तक पहुंची.
  • 2014 में जीत के बाद प्रशांत किशोर की बीजेपी से दूरी बढ़ गई और वे बिहार की तरफ मुड़े. साल 2015 में बिहार विधानसभा के चुनाव में प्रशांत किशोर ने महागठबंधन के लिए काम किया और वहां भी उन्होंने अपना करिश्मा दिखा दिया.
  • चुनाव के बाद प्रशांत किशोर की नीतीश कुमार से नजदीकी बढ़ी और दोनों लोग कई जगह साथ दिखे. हालांकि जब नीतीश कुमार फिर भाजपा के साथ आए तो प्रशांत से खटास की भी खबरें सामने आईं थीं.
  • इस बीच अलग-अलग चुनावों में प्रशांत के अलग-अलग दलों के साथ काम करने की चर्चाएं भी चलती रहीं. फिर राजनीति में आने की खबर आई और आज प्रशांत किशोर ने बिहार से अपनी सियासी पारी शुरू कर दी है.

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