नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने केरल के मशहूर सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को मंजूरी दे दी है. अब यहां सभी उम्र की महिलाएं भगवान अयप्पा स्वामी के दर्शन कर सकेंगी. अब तक यहां रजस्वला न हुईं और रजोनिवृत्ति वाली महिलाओं को ही उम्र संबंधी प्रमाणपत्र दिखाकर प्रवेश मिलता था. लाखों लोग हर साल सबरीमाला मंदिर जाते हैं, लेकिन कम ही लोगों को इस मंदिर की खासियतों की जानकारी है.
पुराणों से है स्वामी अयप्पा का रिश्ता
सबरीमाला में स्वामी अयप्पा की पूजा होती है. उन्हें कंबन रामायण, महाभागवत के आठवें स्कंध यानी चैप्टर और स्कंदपुराण में शिशु शास्ता के तौर पर बताया गया है. 18 पहाड़ियों के बीच सबरीमाला मंदिर है. इसे श्री धर्मषष्ठ मंदिर भी कहा जाता है. मान्यता है कि भगवान परशुराम ने इस मंदिर में स्वामी अयप्पा की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की थी. कई लोग इसे रामायणकाल की शबरी के साथ भी जोड़ते हैं.
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सद्भाव का प्रतीक है सबरीमाला
इस मंदिर को सद्भाव का प्रतीक भी माना जाता है. किसी भी जाति या धर्म का व्यक्ति यहां स्वामी अयप्पा की पूजा कर सकता है. जनवरी में मकर संक्रांति के मौके पर सबरीमाला में उत्सव मनाया जाता है. माना जाता है कि मकर संक्रांति और उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में पंचमी तिथि और वृश्चिक लग्न में स्वामी अयप्पा का जन्म हुआ था. 18 पहाड़ियों से घिरे मंदिर तक पहुंचने के लिए भी 18 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं. इस मंदिर में मालिकापुरत्त अम्मा, भगवान गणेश और नागराजा की भी मूर्तियां हैं.
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चावल, गुड़ और घी का प्रसाद
सबरीमाला मंदिर में स्वामी अयप्पा का घी से अभिषेक होता है. यहां भक्तों को चावल, गुड़ और घी से बना ‘अरावणा’ नाम का प्रसाद दिया जाता है. मलयाली कैलेंडर के महीनों में हर पांच दिन मंदिर को आम भक्तों के लिए खोला जाता है. स्वामी अयप्पा को ब्रह्मचारी बताकर अब तक रजस्वला महिलाओं का यहां प्रवेश रोका जाता रहा है.
धर्मनिरपेक्षता का प्रतीक
सबरीमाला मंदिर धर्मनिरपेक्षता का भी प्रतीक है. मंदिर से कुछ दूर एरुमेलि नाम की जगह पर स्वामी अयप्पा के मुसलमान शिष्य बाबर का मकबरा है. जहां मत्था टेके बिना सबरीमाला की यात्रा पूरी नहीं मानी जाती है.