जानिए क्यों भारतीय स्टूडेंट्स को अपनाना चाहते हैं ब्रिटेन के विश्वविद्यालय

हमारे देश में बहुत से ऐसे युवा हैं जो बाहर यानि विदेशों में पड़ने की इच्छा रखते हैं जिससे वो अपने करियर को और ज्यादा अच्छा कर सकें तो बता दें कि ब्रिटेन के बहुत बड़े और अच्छे विश्वविद्यालय विदेशी स्टूडेंट्स को अपनाने चाहते हैं .

जो कि स्थानीय के मुकाबले ज्यादा फीस भरते हैं क्योंकि इस समय ब्रेग्जिट के कारण फंड की समस्या से जूझ रहा है औऱ ऐसे में भारत और चीन के स्टूडेंट्स की सबसे आगे रहने की संभावना है.

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एक रिपोर्ट के मुताबिक, ग्लासगो यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर और रसेल ग्रुप के चेयरमैन एंटन ने कहा कि अब शीर्ष विश्वविद्यालय विदेशी स्टूडेंट्स विशेषकर चीनी और भारतीय स्टूडेंट्स की भर्ती की कोशिश करेंगे ताकि वित्तीय चुनौतियों से निपट सके और उन्हें उम्मीद है कि ग्लासगो में यूरोपीय संघ और विदेशी स्टूडेंट्स की संख्या 50 प्रतिशत का आंकड़ा पार कर लेगी।

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बता दें कि एक रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रिटेन एक बहुत बड़ी समस्य़ा से जूझ रहा है क्योंकि इस समय
ब्रिटेन में उच्च शिक्षा सेक्टर में कई समस्यायें हो गई हैं और अगर ब्रिटेन ईयू को बिना डील के
छोड़ता है, तो यह उसके लिए बहुत बुरा होगा क्योंकि इससे ईयू से मिलने वाले रिसर्च फंड में 1.3
अरब पाउंड की कटौती हो सकती है और साथ ही ईयू के स्टूडेंट्स की संख्या भी घट सकती है.

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लंदन के अध्यक्ष प्रोफेसर माइकल आर्थर ने कहा कि हो सकता है कि उनका विश्वविद्यालय ईयू
और विदेशी छात्रों की संख्या बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर दे और यूके के स्टूडेंट्स की संख्या को घटा देगा
और इसके साथ ही एग्जेटर यूनिवर्सिटी भी विदेशी स्टूडेंट्स की संख्या बढ़ाने पर विचार कर रहा है
पको बता दें कि शीर्ष विश्वविद्यालयों में विदेशी स्टूडेंट्स पांच साल की मेडिकल डिग्री के लिए हर
साल 30,000 पाउंड से अधिक रुपये होते हैं।

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