नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को हरियाणा के हिसार जिले में 2010 में दलित हत्या मामले में 15 दोषियों द्वारा निचली अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली अपील खारिज कर दी। न्यायमूर्ति मुरलीधर की अगुवाई वाली पीठ ने जाट समुदाय द्वारा वाल्मीकि समुदाय के खिलाफ किए गए ‘नियोजित हमले’ के खिलाफ कठोर टिप्पणी की। घटना के चलते मिर्चपुर गांव के 254 दलित परिवारों को गांव से पलायन करना पड़ा था।
इसने 20 और आरोपियों को दोषी ठहराया जिन्हें पहले ट्रायल कोर्ट ने बरी कर दिया था।
दिल्ली हाईकोर्ट ने कड़ी टिप्पणी कर कहा कि ऐसी घटनाएं हमें याद दिलाती हैं कि हमारे समाज से समानता और बंधुता गायब है. आजादी के 71 साल बाद भी हमारे देश में उच्च जाति के लोगों द्वारा अनुसूचित जातियों पर होने वाली ज्यादतियां खत्म नही हो पा रही है.
70 वर्षीय ताराचंद और उनकी 18 वर्षीय शारीरिक रूप से अक्षम बेटी सुमन की अप्रैल 2010 में चंडीगढ़ से लगभग 300 किमी दूर मिर्चपुर में उनके घर में आग लगाकर हत्या कर दी गई थी और अन्य दलित घरों को भी आग के हवाले कर दिया गया था।
जाट समुदाय से जुड़े कुल 15 आरोपियों को ट्रायल कोर्ट ने मामले में दोषी ठहराया था।
इस मामले में कुल 97 आरोपी मुकदमे का सामना कर रहे थे।
गांव के जाट और दलित समुदायों के सदस्यों के बीच विवाद के बाद हमले को अंजाम दिया गया था।