आजाद भारत में मंगलवार और बुधवार का दिन ऐतिहासिक दिन साबित हुआ. इन दो दिनों में मोदी सरकार ने लोकसभा और राज्यसभा से सवर्ण जाति आरक्षण विधेयक पारित कराया. बहुमत के साथ दोनों सदनों में बिल को पास किया गया, लेकिन संविधान संशोधन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है और कहा गया है कि आरक्षण के तहत मूलभूत ढांचे के साथ छेड़छाड़ की गई है.
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बता दें कि इस याचिका को ‘यूथ फॉर इक्वॉलिटी’ नाम के एक गैर सरकारी संगठन के द्वारा दायर किया गया है. दरअसल, याचिका में इंदिरा साहनी केस में सुनाए गए 9 जजो की बेंच के फासला का हवाला दिया गया और उच्च जाति आरक्षण संशोधन को संविधान के मूलभूत ढांचे के खिलाफ बताया. याचिका में कहा गया है कि जेश में सामाजिक और शैक्षणिक आधार पर आरक्षण मिलता है आर्थिक आधार पर नहीं.
क्या है इंदिरा साहनी केस
अब लग रहा है इंदिरा साहनी केस की तरह साल 1992 का इतिहास एक बार फिर से दोहराया जा सकता है. बता दें कि इंदिरा साहनी का नाम तब चर्चा में आया था, जब उन्होंने 1992 में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी. यह याचिका नरसिम्हा राव सरकार के सवर्णों को आरक्षण दिए जाने के बिल के खिलाफ थी.
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सुप्रीम कोर्ट के 9 जजों की बेंच ने बड़ा मशहूर फैसला है-इंदिरा साहनी केस. उसमें कहा गया था कि ये क्राइटेरिया लागू नहीं हो सकता है. सुप्रीम कोर्ट के उसी फैसले में कहा गया था कि ‘किसी नागरिक के पिछड़े होने की पहचान सिर्फ आर्थिक स्थिति पर नहीं हो सकती और नए क्राइटेरिया पर किसी भी विवाद पर विचार सिर्फ सुप्रीम कोर्ट कर सकता है’ और आरक्षण को 50 फीसदी तक सीमित कर दिया गया था.