राहुल के साथ कर्नाटक जैसी तस्वीर नहीं खिंचवाना चाहते माया, अखिलेश और ममता
नई दिल्ली: तीन राज्यों की सत्ता में वापसी करके कांग्रेस और राहुल गांधी का कद जरूर बढ़ा है मगर विपक्षी लामबंदी के लिहाज से यह जीत कोई बड़ा मंजर नहीं रही है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के अलावा बहुजन समाज पार्टी मुखिया मायावती और समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव भी कांग्रेस के जश्न में शामिल नहीं होने जा रहे हैं. ऐसे में कर्नाटक में कुमारस्वामी सरकार के शपथ ग्रहण जैसा नजारा नहीं दिखने जा रहा है. ममता, अखिलेश और माया शपथ ग्रहण के बहाने विपक्षी एकता की वो तस्वीर खिंचवाने से परहेज कर रहे हैं जिसमें राहुल गांधी की अगुवाई में सब एक खड़े नजर आएं.
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फाइल फोटो: कर्नाटक में कुमारस्वामी सरकार के शपथग्रहण कार्यक्रम में कुछ यू नज़र आयी थीं मायावती और सोनिया गांधी, यह तस्वीर भविष्य की तस्वीर को लेकर खूब चर्चा में रही थी.
मजे की बात यह है कि मध्य प्रदेश में सपा और बसपा ने कांग्रेस सरकार को बिना शर्त समर्थन दिया है. राजस्थान में भी बसपा कांग्रेस के साथ है मगर उसके जश्न से मायावती ने दूरी बना रखी है. कांग्रेस की तरफ से 25 राजनीतिक पार्टियों को कांग्रेस ने न्यौता भेजा है. इसमें सपा, बसपा भी शामिल हैं. आपको याद होगा कि कर्नाटक में कुमारस्वामी सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में विपक्षी एकता का जबरदस्त नजारा देखने को मिला था. मायावती और कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी की गलबहियां करती ऐसी तस्वीर सामने आयी थी कि इन दोनों दलों के बीच आगे के सभी चुनावों में कभी ना टूट सकने वाले गठबंधन के आसार नजर आने लगे थे. लेकिन, क्षेत्रीय राजनीति के समीकरण और पीएम पद के लिए राहुल गांधी की स्वीकार्यता को लेकर पेंच फंस ही गया है. रविवार को डीएमके नेता स्टालिन ने राहुल को पीएम पद का उम्मीदवार बनाकर आग में घी और डाल दिया है. ममता तो भड़क ही गयी हैं, माना जा रहा है कि मायावती को भी स्टालिन की बात पसंद नहीं आने वाली. रही बात अखिलेश यादव की तो उन्होंने राफेल डील पर जेपीसी की जरूरत नकार कर राहुल गांधी के नेतृत्व को परोक्ष चुनौती पहले ही दे दी है. कांग्रेस राफेल को लेकर किसी भी हद पर जाने को तैयार है और इसमें अखिलेश का बयान उनकी हवा निकालने जैसा ही है.
गौरतलब, है कि तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के सबसे बड़े विरोधियों में शुमार हैं मगर विपक्ष के पीएम उम्मीदवार के तौर पर राहुल की दावेदारी उन्हें कबूल नहीं है. ममता आज सोमवार को होने जा रहे तीन राज्यों के शपथ ग्रहण समारोहों में शिरकत नहीं करेंगी. वैसे तो उन्होंने पारिवारिक कारण बताकर दूरी बनाई है और अपने प्रतिनिधि भेजे हैं. लेकिन हकीकत यही बताई जा रही है कि वो लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी का नेतृत्व स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं. दूसरी तरफ अखिलेश यादव और मायावती उत्तर प्रदेश के गठबंधन में कांग्रेस की हिस्सेदारी बढ़ाने के मूड में कतई नहीं हैं. इन दोनों दलों को उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को ज्यादा सीट देना बेकार लगता है. जबकि मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में गठबंधन ना हो पाने के लिए अखिलेश और माया खुलकर कांग्रेस के ईगो को जिम्मेदार ठहरा चुके हैं. छत्तीसगढ़ में तो मायावती ने अजित जोगी से गठजोड़ करके चुनाव लड़ा और कांग्रेस पर जमकर निशाना साधा. यह बात दीगर है कि यह गठबंधन वोटरों पर असर नहीं दाल सका.
राजनीतिक विश्लेषक आशीष मिश्रा की निगाह में दरअसल असली तस्वीर अब बनेगी. पश्चिम बंगाल सीएम ममता बनर्जी , तेलंगाना सीएम के चंद्रशेखर राव सरीखे नेता गैरकांग्रेसी गठबंधन के हिमायती हैं. इन्हें अपने राज्यों में कांग्रेस की बड़ी भूमिका में स्वीकार नहीं है. यही हाल अखिलेश और मायावती का है. मायावती के समर्थक तो अपनी नेता को सीएम पद का उम्मीदवार खुलकर बोल रहे हैं, ऐसे में राहुल गांधी का कद ये नेता कैसे बड़ा कर सकते हैं ? भारतीय जनता पार्टी या कहें मोदी विरोधी वोटरों में सन्देश गलत ना जाए इसलिए एमपी और राजस्थान में यूपी के इन दोनों बड़े दलों ने समर्थन तो दे दिया लेकिन जीत के जश्न को राहुल का नेतृत्व बड़ा करने में ये लोग मददगार नहीं होने वाले. ऐसे मं आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर गैर भाजपा और गैर कांग्रेस गठबंधन की मुहीम जोर पकड़ेगी, जिसका जिक्र एएमआईएम् नेता असदुद्दीन उवैसी लगातार कर रहे हैं.