नई दिल्ली: 11 सितंबर 2001 को अमेरिका में हुए आतंकी हमले को आज 17 साल चुके हैं. 17 साल बाद भी उस घटना की भयावह यादें आज भी लोगों के जेहन में मौजूद हैं. जिस टि्वन टावर को न्यूयॅार्क शहर अपनी शान मानता था उसे आतंकियों ने दो विमानों का मिसाइल की तरह इस्तेमाल करते हुए किसी खिलौने की तरह गिरा दिया था. इस घटना के बाद से ही सारी दुनिया आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में जुट गई.
क्या हुआ 17 साल पहले
9/11 संयुक्त राज्य पर अल-कायदा द्वारा किया गया एक समन्वित आत्मघाती हमला था. उस दिन 19 आतंकियों ने 4 यात्री विमानों का अपहरण किया. जिनमें से दो को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के टि्वन टावरों से टकरा दिया. इस हमले में 2977 लोग मारे गए। मरने वालों में पोर्टयार्ड अग्निशमन के 343 कर्मचारी और 60 पुलिस अधिकारी शामिल थे. आतंकियों ने
जानबूझकर विमान को टि्वन टावर से टकरा दिया जिससे उसमें सवार सभी यात्री और बिल्डिंग में काम करने वाले लोगों को ज्यादा से ज्यादा नुकसान हो सके. हुआ भी वैसा ही, दो घंटे के अंदर विश्व की सबसे ऊंची इमारतों में से एक टि्वन टावर का नामो निशां आतंकियों ने मिटा दिया. इसमें आसपास की इमारतों को भी नुकसान पहुंचा. पूरा न्यूयार्क शहर धूल के गुबार से ढक गया. पहले विमान के बिल्डिंग से टकराने तक लोगों को पता ही नहीं था कि अमेरिका पर आतंकी हमला हुआ है. गजब की बात तो यह है कि अमेरिका के तात्कालिक राष्ट्रपति जॉर्ज बुश भी इसे पहले एक हादसा ही मान रहे थे. आतंकियों ने तीसरा विमान संयुक्त राज्य अमेरिका के रक्षा मुख्यालय पेंटागन पर गिरा दिया वहीं चौथे विमान
को जंगल में गिरा दिया. पेंटागन पर हुए आतंकी हमले में 184 लोग मारे गए. इस हमले में करीब 90 देश के नागरिकों ने अपनी जान गंवाई. यह पहली बार था जब किसी आतंकी संगठन ने सारी दुनिया को आंख दिखाने वाले अमेरिका से सीधे लड़ाई का ऐलान किया था. हमले की वजह से 10 अरब डालर की प्रॉपर्टी और इंफ्रास्ट्रक्चर बर्बाद हो गया. 3.2 करोड़
वर्गफुट आफिस स्पेस खत्म हो गया था. सात दिन के अंदर 1.4 लाख कोरड़ अमेरिकी शेयर डूब गए थे. हमले की दसवीं बरसी पर पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने शपथ ली थी कि अमेरिका आतंकवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई से नहीं डगमगाएगा. इस शपथ को पूरा करते हुए तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अमेरिकी सेना को यह छूट दी की वह इस हमले के मास्टरमाइंड रहे ओसामा बिन लादेन को किसी भी हालत में मार गिराएं. अमेरिकी सेना ने 2 मई 2011 को पाकिस्तान के ऐबटाबाद में ओसामा बिन लादेन को मार गिराया.
महंगी पड़ी सुरक्षा में चूक
कहते हैं कि कभी-कभी एक छोटी सी गलती बहुत भारी पड़ जाती है. ऐसा ही कुछ अमेरिका के साथ भी हुआ था. उस रोज चार प्लेनों को 19 आतंकियों ने हाईजैक कर रखा था. चारों प्लेन अलग-अलग एयरपोर्ट से अपनी मंजिल के लिए निकले थे. उनमे से तीन प्लेन लॉस एंजेलिस के लिए निकले थे, और चौथे प्लेन ने सैन फ्रांसिस्को के लिए उड़ान भरी थी. सभी ने उन प्लेनों की एक आम नागरिक की तरह टिकट ले रखी थी. वह सब आतंकी संगठन अलकायदा के आतंकी थे. कुछ आतंकी बाहर से आये थे, तो कुछ साल भर से अमेरिका में ही रह रहे थे. यह भी बात सामने आई थी कि कुछ आतंकी अमेरिका में प्लेन उड़ाने की ट्रेनिंग तक ले रहे थे. प्लेन पर चढ़ने से पहले कड़ी चेकिंग का बंदोबस्त भी था. माना जाता है कि
यहां से किसी भी अनचाही चीज़ जैसे बंदूक, चाक़ू, आदि को अपने साथ ले जाना नामुमकिन होता है लेकिन सुरक्षा में ढील होने के कारण वह अपने साथ चाक़ू और कटर प्लेन के अंदर ले जाने में सफल रहे. उन्होंने जानबूझकर सुबह की फ्लाइट चुनी थी, क्योंकि दूर के सफ़र में प्लेन में ज्यादा ईंधन भरा जाता है. आतंकियों को पता था कि ज्यादा ईंधन के कारण धमाका बड़ा होगा और नुकसान उससे भी बड़ा।
जब मारा गया लादेन
9/11 के हमले ने अमेरिका की ताकत पर सवालियां निशान खड़े कर दिये थे. वह इसका मुंहतोड़ जवाब देना चाहता था. हमले की जिम्मेदारी आतंकी संगठन अलकायदा के सरगना ओसामा बिन लादेन ने ली थी. ओसामा के हमले की बात कबूलने के बाद तो अमेरिका ने फैसला कर लिया था कि वह अब ओसामा और अलकायदा का खात्मा करके रहेगा. अमेरिका ने कुछ नहीं सोचा और अलकायदा के गढ़ अफगानिस्तान पर सेना भेज दी. उन्होंने पूरे अफगानिस्तान से चुन-चुन कर अलकायदा के आतंकियों को मारना शुरू कर दिया था.
ओसामा तो उनके हाथ नहीं लगा, लेकिन अलकायदा पर हमला कर अमेरिका ने ओसामा को चेतावनी दे दी थी कि उसका आखिरी वक्त आ गया था. 2001 से ही अलकायदा के आतंकियों को मारना शुरू कर दिया गया था. अपने इस आतंकी मारो मिशन को अमेरिका ने ‘वॉर ऑन टेरर’ नाम दिया था. राष्ट्रपति बुश ने अफगानिस्तान में अपनी सेनाएं भेजी थीं, ताकि ओसामा और उसके साथियों का पता लगाया जा सके लेकिन इससे ज्यादा सफलता हाथ नहीं लगी. आरबों डॅालर खर्च किए जाने के बाद भी अमेरिका खाली हाथ रहा. सेनाओं ने जहां-तहां हमले किए लेकिन इसमें सिर्फ निर्दोष नागरिकों का ही नुकसान हुआ.
इस बात की भी खबर नहीं थी की ओसामा जिंदा है या मर गया. सालों की मेहनत सैटेलाइट इमेज और अपने जासूसी नेटवर्क के बाद अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों के लादेन के पाकिस्तान में होने की भनक लगी. एक गुप्त आपरेशन करके अमेरिकी सेना ने उसे पाकिस्तान के ऐबटाबाद में ढूढ़ कर रातों रात मार गिराया. ओसामा के मारे जाने के बाद पाकिस्तान की भी अच्छी खासी किरकिरी हुई. अमेरिका की कार्रवाई से पाकिस्तान के चेहरे से भोलेपन का मुखौटा उतर गया और पूरी दुनिया को यह पता चल गया कि पाकिस्तान आतंकियों का मददगार है।