आखिर क्यों पुत्र शनि और पिता सूर्य में नहीं बनती? जानें पूरी कहानी

आखिर क्यों पुत्र शनि और पिता सूर्य में नहीं बनती

आखिर क्यों नहीं बनती पुत्र शनि और पिता सूर्य में हिन्दू धर्म ग्रंथों में देवी-देवताओं से संबंधित कई कथाएं पढ़ने सुनने को मिलती है. इतना ही नहीं इसमे देवी-देवताओं के साथ-साथ ग्रह-नक्षत्रों के बारे में बहुत सी कथाएं प्रचलित है, जिसके द्वारा हम उनके बारे में जान सकते है.

धार्मिक मान्यताओं

शनि देव के पिता सूर्य देव हैं. ज्योतिष शास्त्र में सूर्य देव को नौ ग्रहों का राजा माना गया है और इन ग्रहों में शनिदेव को दंण्डाधिकारी के रूप में जाना जाता है. वैसे तो शनि देव सूर्य देव के पुत्र हैं लेकिन इन दोनों पिता-पुत्र के बीच कभी भी अच्छे संबंध नहीं रहे हैं.

मान्यता है कि शनिदेव कभी किसी तरह के अन्याय या गलत बात को बर्दाश्त नहीं करते हैं और जो ऐसा करता है शनिदेव उसे दंड भी देते है. शनिदेव हमेशा अपने पिता सूर्यदेव से नाराज रहते हैं. शनिदेव और सूर्य देव का रिश्ता कई सालों से खराब ही चला आ रहा है. पुत्र शनि और पिता सूर्यदेव का रिश्ता होते हुए भी दोनों के बीच कभी क्यो नहीं बनी और दोनों एक-दूसरे के विरोधी कैसे बन गए इसका उल्लेख पौराणिक कथाओं में मिलता है.

पौराणिक कथा

स्कंदपुराण के काशीखंड में वर्णित एक कथा के अनुसार देव विश्वकर्मा की कन्या संज्ञा का विवाह ग्रहों के राजा सूर्यदेव से हुआ था. सारे संसार को प्रकाश देने वाले सूर्यदेव का तेज इतना ज्यादा था कि संज्ञा सूर्यदेव के तेज से घबराती थी. विवाह के कुछ समय बाद सूर्यदेव और संज्ञा से वैवस्वत मनु, यमराज और यमुना नाम की तीन संतानें हुईं, लेकिन फिर भी संज्ञा सूर्यदेव के तेज से घबराती थी. सूर्य के तेज को बर्दाश्त कर पाने के लिए संज्ञा ने तपस्या करने की ठान ली और उन्होंने अपनी हमशक्ल संवर्णा यानि छाया को उत्पन्न किया. फिर छाया को अपने बच्चों की देखरेख का जिम्मा सौंपकर खुद अपने पिता के घर चली गई.

दूसरी ओर जब पिता ने संज्ञा का साथ नहीं दिया तो वह वन में घोड़ी का रूप धारण कर तपस्या में लीन हो गई. दूसरी ओर छाया रूप होने की वजह से संवर्णा को सूर्यदेव के तेज से भी कोई परेशानी नहीं हुई. सूर्यदेव के साथ रहते हुए छाया ने मनु, शनिदेव और भद्रा नाम की तीन संतानों को जन्म दिया.

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब शनिदेव छाया के गर्भ में थे तो छाया ने भगवान शिव की इतनी कठोर तपस्या कि उन्हें खाने-पीने तक की सुध नहीं रही. तपस्या के दौरान भूख-प्यास, धूप-गर्मी सहने की वजह से उसका प्रभाव छाया के गर्भ में पल रहे शनि पर भी पड़ा और उनका रंग काला हो गया.

जब शनिदेव का जन्म हुआ तो उनके रंग को देखकर सूर्यदेव ने छाया पर संदेह किया और उन्हें अपमानित करते हुए कह दिया कि यह मेरा पुत्र नहीं हो सकता. हालांकि माता के तप की शक्ति शनिदेव में भी आ गई थी और अपनी माता को अपमानित होते देख उन्होंने क्रोधित होकर अपने पिता सूर्यदेव पर दृष्टि डाली तो सूर्यदेव बिल्कुल काले पड़ गए और उनके घोड़ों की चाल भी रुक गई.

आखिरकार परेशान होकर सूर्यदेव को भगवान शिव की शरण लेनी पड़ी, तब भोलेनाथ ने उनको उनकी गलती का अहसास करवाया. जिसके बाद सूर्यदेव ने अपनी गलती के लिये क्षमा याचना की तब जाकर उन्हें फिर से अपना असली रूप वापस मिला.

तभी से पुत्र शनि और पिता सूर्यदेव के बीच संबंध खराब हो गए जो फिर कभी सुधर नहीं पाए इसलिए आज भी शनिदेव को अपने पिता सूर्यदेव का विद्रोही माना जाता है. और पिता-पुत्र के बीच बिल्कुल भी नहीं बनती है.

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