हजारों वर्षों से श्रद्धा का केंद्र है तरकुलहा माई का दरबार, इन्हीं मां ने भक्त को छह बार फांसी से बचाया

गोरखपुर: घने जंगलों में विराजमान तरकुलहा माई का दरबार हजारों वर्षों से श्रद्धा का केंद्र है। अब यह आस्था का तीर्थ बन चुका है। तरकुल के पेड़ के नीचे एक मंदिर में विराजमान माता सबकी मन्नतें पूरी करने वाली हैं। यह स्वतंत्रता संग्राम की गवाह भी हैं। कुछ ऐसे उद्धरण हैं, जिसे जाने बिना इनकी शक्ति के बारे में नहीं जाना जा सकता है। आइए, माँ तरकुलहा देवी के प्रताप को जानें- स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी है यह कहानी मंदिर का इतिहास आजादी की लड़ाई से जुड़ा है।

भारतीयों पर अंग्रेज बहुत अत्याचार करते थे। इस दौरान डुमरी रियासत के बाबू बंधू सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया था। वे माता के बड़े भक्तों में शुमार थे। 1857 के आसपास देश में आजादी की पहली हुंकार उठी थी। गुरिल्ला युद्ध में माहिर बाबू बंधू सिंह उसमें शामिल हुए। घने जंगल में अपना ठिकाना बनाया। जंगल से गुजरने वाली नदी के किनारे एक तरकुल के पेड़ के नीचे पिंडियों को बनाकर बंधु सिंह ने मां भगवती की पूजा शुरू की। यहीं से स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई भी शुरू की। बाबू बंधु सिंह गुरिल्ला युद्ध में माहिर थे। मां के चरणों में अंग्रेजों की बलि चढ़ाते थे।

इसकी भनक लगने पर अंग्रेजों ने बाबू बंधु सिंह को गिरफ्तार करने को गुप्तचर लगाया। चाल कामयाब हुई। यह वीर सेनानी पकड़ में आ गया। छह बार टूटा फांसी का फंदा बाबू बंधू सिंह पर मुकदमा चला। अंग्रेज जज ने बंधु सिंह को फांसी की सजा सुनाई। सार्वजनिक रूप से फांसी का फैसला लिया गया। ताकि पुनः कोई बगावत न हो। 12 अगस्त 1857 को पूरी तैयारी कर बाबू बंधू सिंह के गले में जल्लाद ने फंदा डालकर लीवर खींचा। लेकिन वह टूट गया। जल्लाद ने ऐसा छह बार किया। वह हर बार विफल हुआ।

माता से गुहार के बाद सफल हुई फांसी जल्लाद गिड़गिड़ाने लगा था। बाबू बंधु से कहा कि अगर वह उन्हें फांसी नहीं दे सका तो अंग्रेज उसे ही फांसी पर चढ़ा देंगे। फिर बंधू सिंह ने मां तरकुलहा देवी से खुद को फांसी पर चढ़ाने की गुहार लगाई। प्रार्थना के बाद सातवीं बार जल्लाद ने जब फांसी पर चढ़ाया तो उनकी फांसी हो सकी। मन्नतें पूरी होने पर बांधते हैं घंटियां गोरखपुर से बीस किलोमीटर दूर देवीपुर गांव में मां तरकुलहा देवी का यह प्रसिद्ध मंदिर है।

यहां आए भक्त मां से मन्नतें मांगते हैं। मन्नत पूरी होने पर भक्त मंदिर में घंटी बांधते हैं। मंदिर परिसर में चारों ओर अब भी घंटियां बंधी हैं। विशेष रूप से नवरात्रि में यहां आस्थावान आते हैं। प्रसाद है बकरे का गोश्त यहां बकरे का गोश्त ही प्रसाद है। इसलिए मंदिर में बकरा चढ़ाने की परम्परा है। मन्नत पूरी होने पर यहां बकरे की बलि देते हैं। वहीं मिट्टी के बर्तन में उसे बनाते हैं। प्रसाद ग्रहण कर आशीर्वाद लेते हैं।

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

0FansLike
0FollowersFollow
0SubscribersSubscribe

Latest Articles