साल 2018, यूपी में गैर बीजेपी गठबंधन के सस्पेंस के साथ खत्म हो गया। 2019 लोकसभा चुनाव के लिए बनने वाले इस गठबंधन की गुत्थी न तो बसपा ने खोली न समाजवादी पार्टी ने। 2018 की आखिरी प्रेस कॉन्फ्रेंस में अखिलेश यादव ने एक और पहेली बुझाकर राजनीतिक पंडितों को पशोपेश में डाल दिया।
अखिलेश की इस पहेली को बूझने में लखनऊ से लेकर दिल्ली तक लोग माथापच्ची करने में लगे हैं। आखिर गठबंधन के ‘संगम’ में होगा कौन। अखिलेश की गंगा, जमुना यानी सपा बसपा तो समझ में आते हैं। लेकिन लुप्त प्राय सरस्वती कौन है।
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लखनऊ से दिल्ली तक सन्नाटा
अखिलेश यादव ने 30 दिसंबर को पार्टी कार्यालय में हुई पत्रकार वार्ता में गठबंधन के सवाल पर कहा कि, ये विचारों लोगों का ‘संगम’ होगा। इस ‘संगम’ में कितने अखाड़े होंगे, किनका कल्प वास होगा या किनकी धूनी रमेगी। इसका पता लगाने के लिए समाजवादी डेरे से लेकर बसपा कुनबे तक में कानाफूसी शुरु हो गई है।
सपा नब्ज थामने में लगी
गठबंधन के लिहाज से 2019 के जनवरी महीने बेहद अहम माना जा रहा है, क्योंकि 7 तारीख से सपा पूरे प्रदेश में ‘विकास विजन सामाजिक न्याय’ कार्यक्रम चलाने जा रही है। जिसमें वो गांव गांव जाकर अपनी और पार्टी की नब्ज को जानेगी। जिसके परिणाम पर ही सपा गठबंधन में अपनी सीटों को लेकर बात करेगी। माना जा रहा है कि गठबंधन में अपनी भागीदारी को लेकर सपा ऊपर नीचे जाने को तैयार है। लेकिन किन सीटों पर उसको लाभ होगा। इस कार्यक्रम से तय हो जाएगा। जो 7 जनवरी से 20 जनवरी तक चलेगा।
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माया के जन्मदिन का इंतजार
इसके साथ ही गठबंधन की दूसरी धुरी बसपा की सुप्रीमो मायावती का 15 जनवरी को जन्मदिन है। जिसपर सभी राजनीतिक दलों की नज़र है। मायावती अपना जन्मदिन लखनऊ में मनाती हैं, जिसमें कार्यकर्ताओं का जमावड़ा होगा। कार्यकर्ताओं का मन और मिजाज समझने के साथ उनको गठबंधन की स्थिति में वोटरों को साधने और वोट मोड़ने के लिए मंत्र देंगी।
आरएलडी कांग्रेस में झूल रही है सुई
अब सवाल उठता है, तीसरी धारा यानी की संगम की सरस्वती का। उसपर सस्पेंस है, वो आरएलडी होगी या कांग्रेस इसपर नजर है। विचारों की धारा और राजनीतिक मजबूरी आरएलडी के पास है, तो कांग्रेस के पास संगम में आने के सिवा कोई चारा नहीं है। अन्य धाराएं भी इस में कौन कौन सी समाहित होंगी। ये भी अभी तय होना है। लेकिन सपा और बसपा के इन कार्यक्रमों के बाद आगे का रास्ता साफ होता दिख रहा है।