मोदी vs ऑल के बीच कौन होगा चुनाव मैदान में, कितना सफल होगा महागठबंधन, जानें पूरा गणित

लोकसभा चुनाव से पहले राजनीतिक पार्टियां अपने अपने सहयोगियों के साथ गठबंधन कर चुनाव मैदान में जाने के लिए कमर कसती नजर आ रही हैं. राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा खासकर प्रधानमंत्री मोदी को घेरने के लिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कोलकाता में महागठबंधन की रैली बुलाई जिसमें सभी विपक्षी दलों के वरिष्ठ नेताओ के साथ उसके सहयोगी दल भी शामिल हुए.

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इस रैली में जुटे क्षेत्रीय दलों के नेताओं का टारगेट तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी थे. लेकिन सबसे बड़ा सवाल खड़ा होता है कि महागठबंधन की बागडोर किसके हाथ में होगी ? रैली का आयोजन तो कोलकाता में था लेकिन महागठबंधन में आए सभी दलों के नेताओं की निगाह दिल्ली के तख्तों ताज पर ही टिकी नजर आई.

कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी की अगुवाई में हुए विपक्ष के शक्ति प्रदर्शन में पहुंचे 22 दलों के 44 नेताओं को मोदी बनाम ऑल कह कर जनता के बीच प्रचारित किया जा रहा है. क्या ये महागठबंधन सही मायने में एकजुट है जो प्रधानमंत्री नरेंद्री मोदी को लोकसभा चुनाव में चुनौती दे सकता है. लेकिन ऐसा नजर नहीं आता. महागठबंधन की राह आसान नहीं है. आखिर क्यो महागठबंधन को लेकर बीजेपी ज्यादा गंभीर नजर नहीं आती ? आइए हम आपको समझाते है पूरा गणित.

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कोलकाता में ममता बनर्जी की मेगा रैली के बाद से सवाल उठने लगा है कि क्या विपक्ष सच में एकजुट है ? मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बुलावे पर 22 दलों के 44 नेता महागठबंधन की रैली में जुटे तो जरूर थे, लेकिन क्षेत्रीय क्षत्रपों ने इस मंच को खुद को बड़ा दिखाने और जनता का हिमायती बनते नजर आए. भले ही ममता बनर्जी ने मोदी रोको अभियान का सबसे बड़ा शक्ती प्रदर्शन तो कर दिया है. लेकिन नेताओं का एक मंच पर इकठ्टा हो जाना और चुनाव मैदान में जाना दो अलग-अलग बातें हैं. क्योंकि विपक्ष ने ऐसा एक भी उम्मीदवार नहीं खड़ा किया है जो मोदी के खिलाफ चुनाव मैदान में खड़ा हो सके.

संयुक्त मोर्चा तो राष्ट्रीय स्तर पर एक जुट तो दिखता है लेकिन जब बाद राज्यों में गठबंधन की आती है तो संयुक्त मोर्चा में शामिल दल अलग अलग गठबंधन करते दिख रहे हैं. मोदी को हटाने का विपक्ष का मकसद तो साफ है, लेकिन तरीका क्या हो ? जैसा कि यूपी में हुआ जहां समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और आरएलडी चुनाव से पहले ही सीटों का बंटवारा कर ली हैं और कांग्रेस को बाहर का रास्ता दिखा दी हैं. ऐसा लगभग देश के सभी राज्यों में है.

साउथ की स्थिति

21 सीटों वाले ओडिशा में कांग्रेस को बीजेडी से भी लड़ना है और बीजेपी से भी. 17 सीटों वाले तेलंगाना में टीआरएस, कांग्रेस और बीजेपी दोनो के खिलाफ ताल ठोक चुकी है. 25 सीटों वाले आंध्र प्रदेश में भी सिर्फ चार दिनों की दोस्ती के बाद टीडीपी और कांग्रेस का साथ अलग हो गया, जो मिलकर बीजेपी को आंध्र प्रदेश में उनके वोटों में सेंधमारी नहीं करने देना चाहते. तमिलनाडु में सत्ताधारी एआईडीएमके केंद्र में मोदी सरकार की सहयोगी मानी जाती है और उम्मीद है कि फिल्म स्टार रजनीकांत के नए दल के साथ गठबंधन में चुनाव लड़े. हालांकि एआईएडीएमके ने हाल में तीन तलाक विधेयक के मुद्दे पर मोद सरकार का विरोध किया था. जबकि दूसरी तरफ डीएमके कांग्रेस, वाम दलों का गठबंधन है और यह माना जा रहा है कि फिल्म स्टार कमल हासन की नई पार्टी भी इस गठबंधन का हिस्सा बनेगी.

इस नजरिए से तमिलनाडु में मुकाबला गठबंधन या गठबंधन बनाम एआईएडीएमके बनाम बीजेपी होने के आसार हैं न कि मोदी बनाम महागठबंधन. केरल की 20 सीटों के लिए एक तरफ लेफ्ट का गठबंधन एलडीएफ से है तो दूसरी तरफ कांग्रेस नेतृत्व यूडीएफ के साथ खड़ी है. वही बीजेपी राज्य में गठबंधन के साथ खड़ी है. जहां मोदी बनाम महागठबंधन नहीं दिखता. कार्नाटक में लोकसभा की कुल 29 सीट है. कर्नाटक कांग्रेस और जेडीएस तो विधानसभा चुनाव अकेले लड़ी लेकिन बीजेपी को रोकने के लिए दोनों दल साथ मिलकर सरकार चला रहे हैं. और माना जा रहा है कि दोनों दल लोकसभा चुनाव में एक साथ बीजेपी के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे.

उत्तर प्रदेश की वस्तु स्थिति

लोकसभा चुनाव के लिहाज से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में कुल 80 लोकसभा की सीटें हैं जिन पर 2014 के आम चुनाव पर बीजेपी, अपना दल और ओमप्रकाश राजभर की पार्टी के बीच गठबंधन हुआ था. और 2019 के लोकसभा चुनाव में भी ये दल बीजेपी के साथ ही खड़े नजर आ रहे हैं. तो दूसरी तरफ सपा-बसपा और आरएलडी का गठबंधन है जो सीटों के बंटवारे के साथ कांग्रेस को गठबंधन से बाहर का रास्ता दिखा दी है.

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बिहार की 40 लोकसभा सीट

देश के दूसरे सबसे बड़े राज्य बिहार की राजनीति पर नजर डाले तो बीजेपी ने पहले ही जेडीयू और रामविलास पासवान की पार्टी एलजेपी के साथ गठबंधन का ऐलान कर चुकी है. यही नहीं बीजेपी ने यहां 2 सांसदो वाली जेडीयू को 17 सीटें दी हैं. जबकि एनडीए गठबंधन के सामने कांग्रेस, लालू यादव की पार्टी आरजेडी, जीतन राम माझी की हिंदुस्तान आवाम मोर्चा, शरद यादव की लोकतांत्रिक जनता दल और वाम पंथी दलों का गठबंधन है. जो महागठबंधन को मोदी बनाम ऑल नहीं बल्कि गठबंधन बनाम गठबंधन की लड़ाई नजर आती है.

महाराष्ट्र की 48 सीटों का लेखा-जोखा

2014 में महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव के दौरान जिस तरह से गठबंधन दलों के बीच मुकाबला देखने को मिला था वैसा ही मुकाबला आगामी लोकसभा चुनाव में भी नजर आ रहा है. राज्य में बीजेपी और शिवसेना गठबंधन बना कर चुनाव मैदान में एक बार फिर उतरने का मन बना रही हैं तो दूसरी ओर कांग्रेस और एनसीपी.

पश्चिम बंगाल में 42 सीटों के लिए कांटे की टक्कर

देश की सियासत में पश्चिम बंगाल खास महत्व रखता है. पश्चिम बंगाल में बीजेपी किसी सहयोगी के बिना चुनाव मैदान में उतर रही है तो दूसरी ओर ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी है जो शायद ही वाम दलों के साथ चुनाव मैदान में उतरे. रही बात कांग्रेस की तो कांग्रेस की राज्य इकाई अभी तक तय नही कर पाई है कि वे टीएमसी के साथ जाएं या वाम दलों के साथ गठबंधन कर लोकसभा चुनाव में मैदान में उतरे.

पूर्वोत्तर की 25 सीट पर सहयोगी

पूर्वोत्तर के आठ राज्यों की बात करें तो यहां भी बीजेपी या उसकी सहयोगी क्षेत्रीय दल सत्ता में हैं. सीटों के लिहाज से पूर्वोत्तर के सबसे बड़े राज्य असम में बीजेपी-बोडो पिपल्स फ्रंट का गठबंधन बनाम असम गण परिषद बनाम कांग्रेस बनाम बदरुद्दीन अजमल की ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक फ्रंट के बीच मुकाबला है. असम गण परिषद इससे पहले बीजेपी की सहयोगी रही है. लेकिन सिटिजनशिप अमेंडमेंट बिल को लेकर उसने समर्थन वापस ल लिए. राज्य में बदरुद्दीन अजमल कांग्रेस के साथ गठबंधन की बात कह चुके हैं. बीजेपी की सहयोगी दल नेशनल पीपुल्स पार्टी जो कि मेघालय और मणिपुर में साझा सरकार चला रही है. ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला लिया है. पूर्वोत्तर में बीजेपी की लड़ाई कांग्रेस से है या क्षेत्रीय दलों से.

मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़-65 सीट

मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में शुरू से ही कांग्रेस और बीजेपी में सीधा मुकाबला रहा है. लेकिन यहां भी क्षेत्रीय दल अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं. हाल में हुए विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश में सपा, बसपा और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी अलग चुनाव लड़ी थीं. राजस्थान में भी भारतीय ट्राइबल पार्टी, बीएसपी और हनुमान बेनीवाल की पार्टी अकेले चुनाव लड़ी थी. जबकि छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी की पार्टी और बीएसपी के बीच गठबंधन था. लिहाजा इन राज्यों में कांग्रेस-बीजेपी के बीच मुख्य मुकाबला होने के बावजूद क्षेत्रीय दल इन दोनों पार्टियों से लड़ रहे हैं. इसलिए यहां भी मोदी vs ऑल की तस्वीर बनती नहीं दिखती.

पंजाब, हरियाणा, दिल्ली-30 सीट

छोटे राज्यों की बात करें तो पंजाब में कांग्रेस अकेले खड़ी है, दूसरी तरफ बीजेपी-अकाली का गठबंधन है तो वहीं तीसरा कोण आम आदमी पार्टी का है. इसलिए यहां का मुकाबला कांगेस बनाम बीजेपी-अकाली बनाम AAP होगा न कि मोदी vs ऑल. दिल्ली की बात करें तो यहां भी कांग्रेस, बीजेपी और आम आदमी पार्टी तीनों दल एक-दूसरे से लड़ते हुए दिख रहे है. जबकि हरियाणा का मुकाबला त्रीकोणीय है जिसमे-कांग्रेस, बीजेपी और आईएनएलडी के बीच मुकाबला है. तो यह मुकाबला मोदी vs ऑल कैसे हुआ?

44 फीसदी सीटों पर अकेला महागठबंधन नहीं

जिस बंगाल को देश ने विपक्षी एकता का महासागर बनते देखा है वहां महागठबंधन की तस्वीर ही अभी तक साफ नहीं है कि महागठबंधन एकजुट होकर चुनाव मैदान में उतरेगा या अलग अलग. फिलहाल 9 राज्य ऐसे हैं, जहां कुल 237 सीटें है. यानी 543 सीटों में से 44 फीसदी सीटों पर  बीजेपी के खिलाफ अकेला महागठबंधन नहीं बनता दिखता.

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