तीन राज्यों में कांग्रेस ने न सिर्फ चुनाव जीते हैं, बल्कि महागठबंधन में ड्राइविंग सीट पर भी बैठ गई है। तीन राज्यों में सरकार बनने से कांग्रेस का मनोबल तो बढ़ा ही है। साथ ही महागठबंधन में सम्मानजनक सीटें पाने और पीएम उम्मीदवार अपनी पसंद का बनाने की दावेदारी को भी मजबूत कर लिया है।
ये हालात कांग्रेस के लिए तब बदले हैं, जब परिणाम आने के ठीक एक दिन पहले हुई गैर एनडीए दलों की बैठक में सपा, बसपा गायब थे। जो जीत के बाद अचानक बिना मांगे ही समर्थन देने चले आए। ऐसे में न सिर्फ कांग्रेस को महागठबंधन में मौलिक जीत मिली है, बल्कि मनोबल भी दोगुना रफ्तार से बढ़ा है।
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लोकसभा के लिए मिली संजीवनी बूटी
इस जीत के साथ ही राहुल गांधी अब अखिलेश और माया पर भारी पड़ने वाले हैं। क्योंकि यहां की जीत के बाद न सिर्फ राहुल गांधी का कद बढ़ गया है। बल्कि तीनों राज्यों की 65 सीटों पर लोकसभा के लिए अपना दबदबा भी बढ़ा लिया है। जहां अबतक मोदी नाम की तूती बोलती थी। जीत से गदगद राहुल यूपी की 80 सीटों पर ज्यादा से ज्यादा सीटें अपने पाले में रखने की कोशिश करेंगे। जिसके लिए सपा और बसपा अब से पहले राहुल की सुनना तो दूर, महागठबंधन में शामिल होने को लेकर राजनीतिक ब्लैकमेलिंग कर रहे थे।
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मनमुताबिक सीटें चुनने के लिए कांग्रेस स्वतंत्र
आकड़ों की बात करेंगे तो एमपी में लोकसभा की 29 सीटें है। वहीं राजस्थान में 25 और छत्तीसगढ़ में 11 सीटें हैं। तीनों राज्यों में अब कांग्रेस की सरकार है। जनता के जिस गुस्से को कांग्रेस ने विधानसभा में भुनाया है। उसे वो 2019 तक ले जाने की जुगत में हैं। ताकि वो किसी भी हाल में मोदी की सीटें कम करने के साथ अपने लिये कुछ सीटें इकट्ठा कर ले।
जोगी के साथ जाने का दांव फेल
छत्तीसगढ़ में बसपा का जोगी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का दांव खाली निकल गया है। इसके साथ ही छत्तीसगढ़ में सीट मांगने का मौका भी। एमपी, राजस्थान में भी नाम मात्र की सीटों पर मिली जीत से सीट मिलने की हैसियत भी तय हो गई है। यानी अब कांग्रेस जैसे चाहेगी वैसे महागठबंधन में तोलमोल करेंगी। वहीं अखिलेश और बसपा को अपने मुताबिक गिनती की सीटें देने के मसकस में भी कामयाब होगी। जो इस चुनाव से पहले बेहद मुश्किल था।
क्या कहते हैं जानकार
कांग्रेस की इस जीत और गठबंधन के सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार बृजेश शुक्ल कहते हैं,
‘सत्ता आने से स्वाभाविक दम्भ आता है। हार से साथियों का दबाव झेलना पड़ता है। अब तक कांग्रेस, सपा, बसपा की सुन रही थी। अब सपा, बसपा को दिल पर पत्थर रखकर कांग्रेस यानी राहुल गांधी की सुननी पड़ेगी। इसीलिए मायावती ने भारी मन से कांग्रेस को कोसते हुए समर्थन देने को राजी हो गई हैं। जो कि मानमनौवल्ल चाहती थी। सपा के पास भी कोई रास्ता अब बचा नहीं है’।