गोदी मीडिया: कांग्रेस की जीत के साथ पत्रकारिता का यह कलंक मिटेगा ?

2014 के बाद जिसतरह से मोदी का जादू पूरे देश में छाया। ब्यूरोक्रेसी से लेकर संस्थानों में मोदी मय होने का परचम लहराया। उससे मीडिया भी अछूता नहीं रहा।

बीते चार सालों में जितना कवरेज मोदी को मिला। जिसतरह से देश ही नहीं विदेश में भी मोदी के बारे में पलपल ख़बरें छपी उससे एक बात आम जनता में गई की मीडिया अब मोदी मय हो गया है। आरोप जितने गंभीर थे कि सोशल मीडिया से लेकर लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पत्रकारिता पर बिके होने का आरोप लगा।

ये ऐसे आरोप थे जो आजादी के बाद किसी सरकार या किसी कालखंड में नहीं लगे थे। मोदी के हर कथन को जिसतरह से प्रेस-मीडिया में ख़बरें छापी गई। उसके बाद आरोप लगे की अगर ख़बर मोदी से जुड़ी नहीं हैं। तो ख़बर ही नहीं है।

पत्रकारिता के गिरते स्तर पर चर्चा यहां तक पहुंच गई, कि तमाम विद्वानों ने मीडिया की आलोचना के साथ कई लेख लिख डाले। देश की आजाद मीडिया पर कोर्ट से लेकर राजनीतिक दलों तक में कुछ नियम और कवरेज के लिए कानून बनाने तक की बात चर्चा में आ गई। पत्रकारों की हत्याओं को लोगों ने राजनीतिक रंग देना शुरु कर दिया।

प्रो मोदी बनाम एंटी मोदी

हद तो तब हो गई जब मीडिया को प्रो मोदी और एंटी मीडिया नाम के दो धड़ों में जनता ने खुद ही बांट दिया। सोशल मीडिया मेें चैनल्स के नाम तक पार्टियों के साथ जोड़ दिए गए। लोग खुलकर ये बात करने लगे की। फलां चैनल तो बीजेपी को सपोर्ट करता है। वो चैनल कांग्रेस पार्टी का है। नेताओं का पैसा लगा है। अंबानी बीजेपी को सपोर्ट करता है। इसलिए उसके चैनल भी मोदी का नाम लेते हैं।

जो चैनल मोदी की बुराई दिखाता दिखा, उसे देशविरोधी गतिविधियों और राष्ट्रद्रोही तक करार दे दिया गया। हालंकि इस दौरान कुछ संस्थान अपनी ख़बरों को राष्ट्रभक्त मीडिया का नाम देकर बढ़ा चढ़ा कर प्रसारित करने में भी पीछे नहीं रहे। कुछ पत्रकारों की नौकरी गई तो उसे मोदी के खिलाफ बोलने की सजा बता दिया गया।

राजनीतिक दलों ने भी उठाए सवाल

राजनीतिक दलों ने भी मीडिया से निष्पक्षता की मांग की। ख़बरों को तोड़ मरोड़ कर चलाने का आरोप लगा। बहस यहां तक पहुंची की मोदी ने मीडिया को खरीद लिया है। वो जैसा चाहते हैं मीडिया वही दिखाता है। इसी दौरान पत्रकारों की एक नई लॉबी तैयार हुई। मीडिया में पत्रकारों के बीच भी दो फाड़ हो गई गई। इलेक्ट्रानिक मीडिया के जाने माने पत्रकार रवीश कुमार ने तो मीडिया के लिए नया नाम गढ दिया ‘गोदी मीडिया’!

दूरदर्शन पर भी लगे आरोप

रवीश के दिए ‘गोदी मीडिया’ नाम ने सोशल मीडिया में जमकर बहस कराई। कांग्रेस ने प्रसार भारती के ऊपर आरोप लगाते हुए दूरदर्शन को ‘भगवादर्शन’ का नाम दिया। आरोप लगाया की पूर्व प्रधानमंत्रियों की श्रद्धांजलि और कांग्रेस के स्वर्गीय नेताओं के कार्यक्रम की कवरेज की परंपरा बंद कर दी गई है। सबकुछ केंद्र में बैठी मोदी सरकार के द्वारा कराया गया है।

अब जबकि पांच राज्यों के परिणामों के बाद कांग्रेस ने तीन राज्यों में अप्रत्याशित जीत दर्ज की है। इस जीत के साथ ही बीते तीन चार दिनों से मीडिया में कांग्रेस की जितनी चर्चा है, राहुल गांधी के पीछे मीडिया जिस रफ्तार से भाग रही है। इतनी कवरेज बीते चार सालों में कभी नहीं मिली जितनी आज मिल रही है।

जीत के बाद मिली कांग्रेस को जगह !

तमाम मीडिया चैनल लगातार राजस्थान और मध्य प्रदेश में हर घटनाक्रम को कवर कर रहे हैं। वहीं अखबार भी कांग्रेस की ख़बरों से भरे पड़े हैं। ऐसे में सवाल ख़ड़ा हो गया है। कि अब तक गोदी मीडिया के नाम से बदनाम मीडिया क्या अब बदल रही है। क्या ये कांग्रेस की जीत का असर है। या कोई दूसरी वजह है। क्या दिन भर मोदी का चेहरा और ख़बरें चलाने वाले चैनल अब राहुल और कांग्रेस को तवज्जो देंगे। जो अब तक कांग्रेस की प्रेस कांफ्रेस लाइव तो दूर क्लिप तक चलाने में कतराते थे।

अखबारों में पहले पन्ने में सिर्फ कतरनों में ख़बरें छपती थी. बीच के पेज में भी मामूली सी जगह मिलती थी। आम जनमानस के सरोकारों की ख़बरें जो खो गईं थी क्या वो वापस हेडलाइन बनेंगी। इसी को लेकर राजसत्ता एक्सप्रेस ने कई वरिष्ठ पत्रकारों से बात की। जानिए उन्होंने क्या कहा।

दीपक शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार
दीपक शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार

कई सालों तक अखबार और इलेक्ट्रानिक चैनल में काम कर चुके वरिष्ठ पत्रकार दीपक शर्मा बताते हैं। कि ‘छोटे अखबार और चैनल शुरु ही जनमानस और संतुलित पत्रकारिता करते आ रहे हैं। मेन स्ट्रीम मीडिया में जरूर चौंकाने वाला परिवर्तन 2014 के बाद आ गया है। जिसके अपने व्यवसायिक और व्यक्तिगत कारण रहे हैं। चैनलों में बीजेपी की नीतियों, निर्णयों की आलोचना तो दूर समालोचना तो दूर कमियों तक को नहीं छुआ गया। अब मीडिया बैलेंस पत्रकारिता करने की ओर बढ़ेगी। कांग्रेस ऐसे चैनल और अखबारों की सूची बना चुकी है। 2019 में कुछ परिवर्तन न हो जाए इसकी मीडिया में चर्चा शुरु हो गई है। कांग्रेस को अब मीडिया में कवरेज मिलेगी’। 

कुमार सौवीर, वरिष्ठ पत्रकार
कुमार सौवीर, वरिष्ठ पत्रकार

प्रिंट मीडिया में दशकों तक काम कर चुके, लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार कुमार सौवीर की माने तो, ‘मीडिया में इतनी गिरावट कभी नहीं आई। कुछ अखबारों की मोदी के प्रति आस्था है, कुछ ने निष्ठावस जगह देनी शुरु की थी। लेकिन धीरे धीरे पत्रकारिता पर ही सवाल उठने शुरु हो गए। अब इस कांग्रेस की जीत से मीडिया को समझना चाहिए की। पत्रकारिता सरकारों के लिए नहीं जन सरोकारों के लिए होती है’। 

 

बृजेश शुक्ला, वरिष्ठ पत्रकार
बृजेश शुक्ला, वरिष्ठ पत्रकार

वहीं बृजेश शुक्ल कहते हैं, ‘ये दुर्भाग्य पूर्ण है कि मीडिया का चाल, चेहरा, चरित्र और स्तर सभी में गिरावट आ गई है। अब मंत्रियों और मुख्यमंत्री के साथ सेल्फी और फोटो खिंचाने की खींचतान है। मीडिया जिसकी सरकार उसके साथ चलने लगी है। मीडिया ने मूल काम छोड़कर दूसरे सभी कामों में मन लगा रही है। कल राहुल गांधी की सरकार आ जाएगी सब उसके साथ हो जाएंगे। आज योगी और मोदी के साथ चल रहें है। कल माया और और अखिलेश के साथ हो जाएंगे। उनके लिए लिखने लगेंगे। मीडिया को अब आत्मचिंतन की जरूरत है। क्योंकि ख़बरें सब फटाफट हो गई है। और खान पान सादगी पर बहस को जगह मिल गई है’।

 

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