यहां जानें कैसे बुंदेलखंड में पानी लिख रहा है खुशहाली की इबारत

Here's how water is writing in Bundelkhand.

हमीरपुर: बुंदेलखंड में कहते हैं कि ‘पानी है तो खुशहाली है और जवानी है.’ जीवन के इस सूत्र वाक्य को हमीरपुर जिले के बसरिया गांव में पहुंचकर समझा और महसूस किया जा सकता है, क्योंकि यहां पानी की उपलब्धता ने खुशहाली की नई इबारत लिखना शुरू कर दिया है.

बुंदेलखंड के सबसे समस्याग्रस्त जिलों में से एक है हमीरपुर. यहां के सरीला विकासखंड मुख्यालय से जब उबड़-खाबड़ रास्तों से होते हुए और लगभग दो किलोमीटर पैदल चलने के बाद बरसाती नाले पड़वार पर ठहरा हुआ पानी नजर आता है, जो एक तरफ मन को सुकून देता है तो दूसरी ओर सवाल खड़े कर जाता है कि क्या इस क्षेत्र के बरसाती नाले में बरसात गुजर जाने के बाद भी पानी ठहरा मिल सकता है?

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बुंदेलखंड और पानी की समस्या एक दूसरे के पूरक है, बुंदेलखंड की चर्चा भी सूखा और पानी संकट को लेकर होती है. पड़वार नाले में ठहरे पानी की कहानी जब हरदास केवट सुनाते हैं तो उनकी उनके चेहरे पर बिखरी खुशी और आने वाले समय की संभावनाओं को साफ पढ़ा जा सकता है.

हरदास कहते हैं कि बरसात गुजर जाने के बाद इस नाले में पानी मिलेगा, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी, मगर यह संभव हुआ है. इसके चलते यहां किसान आसानी से दो फसल तो लेने ही लगेंगे, साथ ही मछली भी लोगों को मिल जाएगी.

माधव सिंह की मानें तो इस नाले पर चेकडैम बनाने के लिए गांव के लोगों के बीच संवाद किया गया. पानी पंचायत बनी, लोगों ने तय किया कि अगर पड़वार नाले के पानी को रोक दिया जाए तो 100 से अधिक किसानों की खेती को आसानी से पानी मिल जाएगा, वे साल में एक नहीं दो खेती कर सकेंगे. यह कोशिश कामयाब हुई, चेकडैम बना, पानी रुका और भरोसा है कि किसानों को भरपूर पानी मिल जाएगा, जिससे उन्हें किसी तरह की समस्या से नहीं जूझना होगा.

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हरिशंकर बताते हैं कि पड़वार नाले में पानी ठहरने से हुए लाभ को कुओं के जलस्तर में हुई बढ़ोतरी के जरिए देखा और समझा जा सकता है. इस बार बारिश के बाद नाले के आसपास के कुओं का जलस्तर पिछले वर्षो की तुलना में एक से डेढ़ मीटर तक बढ़ा हुआ है. इसलिए यह उम्मीद की जा सकती है कि मार्च तक यहां पानी का संकट नहीं रहेगा.

यह बताना लाजिमी है कि बुंदेलखंड में उत्तर प्रदेश के सात और मध्य प्रदेश के छह जिले आते हैं. यहां बारिश कम होने के कारण एक तरफ खेती चौपट है तो दूसरी ओर रोजगार के अवसर न होने के कारण मेहनती लोगों का पलायन बड़ी संख्या में होता है. पानी की उपलब्धता जिन भी इलाकों में बढ़ी है, वहां पलायन तो रुका ही है, साथ में खेती बेहतर होने लगी है.

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गैर सरकारी संगठन परमार्थ समाजसेवी संस्थान के कार्यक्रेम निदेशक अनिल सिंह ने आईएएनएस को बताया कि बुंदेलखंड में पानी की उपलब्धता के लिए पड़वार नाले पर बनाया गया चेकडैम बसरिया गांव में बड़ा बदलाव लाने वाला है. यह 35 मीटर लंबा और ढ़ाई मीटर ऊंचा है. इस चेकडैम में 96,000 क्यूविक मीटर पानी रोका गया है. 72 किसानों की 125 एकड़ जमीन की सिंचाई हो रही है. इसमें 20 एकड़ ऐसी जमीन है, जिसकी आज तक कभी सिंचाई हो ही नहीं पाई.

सिंह बताते हैं कि पड़वार नाले में बारिश में आने वाले पानी और बहकर बेतवा नदी में चले जाने का अध्ययन किए जाने के बाद कोका कोला के सहयोग से यह चेकडैम बनाया गया, और अब इसमें रोके गए पानी से बदलाव नजर आने लगा है. इस गांव की खुशहाली में यह चेकडैम बड़ी भूमिका निभाएगा.

बुंदेलखंड में पानी, पलायन और बेरोजगारी बड़ी समस्याएं बन गई हैं. जिन इलाकों में पानी की उपलब्धता है, वहां लोगों का जीवन बदल चला है. काश बुंदेलखंड पैकेज का भी बेहतर इस्तेमाल हुआ होता तो बुंदेलखंड पानीदार हो गया होता.

SOURCEIANS
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