लोकसभा चुनाव में कितना असर डालेगा मुस्लिम वोटर, जानिए निर्णायक भूमिका में हैं कौन सी सीटें

उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव की तारीखों से पहले ही सियासी सरगर्मियां तेज हो गई हैं. राजनीतिक पार्टियां अपने सहयोगी दलों के साथ गठबंधन कर चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी कर रही है. यूपी में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के एक साथ आ गए हैं. दोनों पार्टियां दलित, ओबीसी और खासकर मुस्लिम वोटरों के सहारे मैदान में उतरने का प्लान कर रही हैं.

यूपी में मुस्लिम वोटरों की लगभग 19.5 फीसदी आबादी हैं. गठबंधन से पहले मुस्लिम वोट सपा और बसपा में बंट जाता था और इसका फायदा बीजेपी को मिलता था. 2014 के लोकसभा चुनाव में इसका असर भी दिखा था. मुस्लिम बहुल इलाके में एंटीबीजेपी साफ तौर पर देखी जा सकती है.

यूपी में बीते ढाई दशक में मुस्लिम मतदाता अधिकतर मुलायम सिंह यादव पर ही भरोसा जताते रहे हैं. इस बार स्थिति दूसरी है और सपा की कमान उनके बेटे अखिलेश यादव के हाथों में है. अखिलेश ने मायावती के साथ गठबंधन कर मुसलमानों को सशक्त विकल्प देने की कोशिश की है. जिससे मुसलमानों की दुविधा खत्म हो सके. सपा-बसपा गठबंधन की रणनीति भी यही है कि मुसलमानों का एकमुश्त वोट उसे मिले और वो उत्तर प्रदेश की लोकसभा की 80 सीटों में से ज्यादा से ज्यादा पर जीत हासिल कर सके.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश

पश्चिमी यूपी में मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, मेरठ, बागपत, हापुड़ और गाजियाबाद जैसी सीटों पर अब समीकरण बदलते दिख रहे हैं.

पश्चिमी उत्तर प्रेदश में सपा-बसपा गठबंधन से मुसलमानों के बीच स्थिति साफ होती दिख रही है. मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग अखिलेश यादव के सीएम रहते हुए मुजफ्फरनगर दंगों के बाद से ही नाराज रहा, लव जिहाद, कैराना पलायन और धर्मांतरण जैसे मुद्दों पर भी मुसलमान अखिलेश यादव सरकार से नराज दिख रहे थे.

लेकिन स्थितियां बदल चुकी है और पिछले कुछ समय से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुसलमानों का रुझान सपा की बजाए बीएसपी की तरफ खिसकता नजर आ रहा था. लेकिन मायावती और अखिलेश यादव में गठबंधन हो जाने पर राजनीतिक पंडित मान रहे हैं कि दोनों के एक साथ चुनाव लड़ने से वोटों का बंटवारा नहीं होगा और गठबंधन का प्रत्याशी जीत हासिल कर लेगा. सपा-बसपा का उम्मीदवार सशक्त दिखने पर मुस्लिम वोटर उसके नाम पर बटन दबा सकता हैं.

मेरठ 35-40 फीसदी

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ज्यादातर मुसलमानों का रुख सपा-बसपा गठबंधन की तरफ नजर आता है. मेरठ और इसके आसपास के जनपदों में मुसलमान वोटरों की संख्या 35-45 फीसदी तक है जो किसी भी पार्टी के परिणाम पर बड़ा प्रभाव डालता है

बिजनौर में 40 फीसदी

बिजनौर जिले में मुसलमानों की संख्या करीब 40 फीसदी है. इन सीटों पर बीजेपी को हराने के लिए मुस्लिम मतदाता एक जुट नजर आते हैं और मजबूत गठबंधन के प्रत्याशी के पक्ष में वोट डालते हैं.

मुजफ्फरनगर में 35 फीसदी

मुजफ्फरनगर का जातीय समीकरण राजनीतिक दलों को पशोपश में डाल देता है. जिले में लगभ 35 फीसदी मुसलमान एंटी बीजेपी पर वोट करते हैं और विपक्षी उम्मीदवार को जिताने के लिए बढ़ चढ़कर हिस्सा लेता है.

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हापुड़ में 35-40 प्रतिशत

राजधानी दिल्ली से लगे हापुड़ में मुसलमानों का लगभग 35-40 प्रतिशत जनसंख्या है जो किसी भी चुनाव में निर्णायक की भूमिका में नजर आते हैं और यही वजह है कि राजनीतिक दलों को जीत के लिए सिर्फ बीजेपी उम्मीदवार को हाराने के लिए ज्यादा रणनीति बनाने की जरूरत नहीं समझते हैं.

बागपत 35 फीसदी

बागपत में बात करें तो जिले में 35 फीसदी जनसंख्या मुसलमानों की है और वो गठबंधन के साथ नजर आते हैं. लेकिन उम्मीदवारों की मजबती को देखते हुए ये पसंद बदल भी सकती है.

सहारनपुर 35-40 फीसदी

सहारनपुर की कुल आबादी में लगभग 35-40 फीसदी मुस्लिम आबादी है और मजबूत स्थिति में दिख रहे प्रत्याशी को वोट करते आ रहे हैं. फिलहाल गठबंधन पर ज्यादा न बोलते हुए वक्त का इंतजार करने की बात कर रहे हैं. यहा मुस्लिम मतदाताओं की यही सोच दिखाई दी कि बीजेपी के खिलाफ जो भी सबसे सशक्त उम्मीदवार होगा, उसी को वोट जाएगा. वो चाहे किसी भी पार्टी का क्यों ना हो.

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पश्चिम में मुसलमानों की रुख पर बात करते हुए राजनीतिक विशलेषक कहते है कि, मुसलमान सपा-बसपा गठबंधन को ही वोट देना पसंद करेंगे. अखिलेश को नए युग का सेकुलर नेता बताते हुए ज्यादातर मुस्लिम वोटर उन्हीं की तरफ है.

पूर्वी उत्तर प्रदेश

पूर्वी उत्तर प्रदेश का राजनीतिक समीकर थोड़ा अलग हैं. यहां भी मुसलमानों की पहली पसंद समाजवादी पार्टी जरूर है, लेकिन बीएसपी ने इस क्षेत्र मं बड़ी सेंध लगा रखी है. पूर्वांचल की राजनीति में असर रखने वाले अंसारी बंधुओं अगर गठबंधन का साथ देते है तो यह लड़ाई एक तरफा होगी.

वैसे भी सपा-बसपा गठबंधन के बाद मुसलमानों के बीच स्थिति साफ हो गई है और वो अपन निर्णाक वोट उसी उम्मीदवार को करने की बात कर रहे हैं जो गठबंधन क बैनर तले मैदान में होगा. ‘गाजीपुर, मऊ, जौनपुर और गोरखपुर जैसे इलाको में मुसलमानों की अच्छी खासी उपस्थिति है जो आगामी लोकसभा चुनाव में गठबंधन के साथ जा सकते हैं. गोरखपुर उप चुनाव में इसका परिणाम देखने को मिला था.

वाराणसी में 15.85 फीसदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वारणसी में भी मुसलमानों की ठीक-ठाक आबादी है. जो किसी भी पार्टी के चुनावी नतीजों को बदल सकते हैं.

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आजमगढ़ में 28.07 फीसदी

आजमगढ़ में 28.07 फीसदी मुस्लिम आबादी है और यहा सपा का दबदबा माना जाता है. गठबंधन से पहले ये वोट बसपा और कांग्रेस उम्मीदवारों में बंट जाता था. लेकिन गठबंधन के बाद शायद ये वोट बीजेपी के खिलाफ जाए.

मऊ में 22.74 फीसदी

मऊ में लगभग 22.74 प्रतिशत मुसलमान वोटर हैं जो किसी भी पार्टी के साथ जा सकते हैं.

गाजीपुर में 13.89 फीसदी और मिर्जापुर में 10.63 फीसदी मुसलमान मतदाता अपनी वोट का जमकर प्रयोग करते हैं. जो सशक्त उम्मीदवार के पक्ष में वोट देता है.

लखनऊ और अवध क्षेत्र

लखनऊ और अवध क्षेत्र में मुसलमान समाजवादी पार्टी और कांग्रस के साथ रहा है लेकिन वक्त के साथ बहुजन समाज पार्टी ने इस वोट बैंक में सेंधमारी कर अपनी उपस्थिति दिखाई है. राजनीतिक विशलेषकों का कहना है अवध क्षेत्र में वोट सुन्नी और शिया मतदाताओं के बीच बंटा है और सुन्नी मतदाताओं में सेकुलर दलों को बढ़ चढ़कर वोट करते हैं, सपा-बसपा गठबंधन के बाद बीजेपी के लिए यह कांटे की लड़ाई होगी. शिया मुसलमानों के बारे में कहा जाता है कि वो बीजेपी को वोट करते हैं जो किसी भी पार्टी के उम्मीदवार में निर्णायक होता है.

बुंदेलखंड

बुंदेलखंड में बसपा मुसलमानों के बीच मजबूत स्थित में हैं. और यही वजह है कि सपा-बसपा गठबंधन के बाद पार्टी अपना उम्मीदवार उतार सकती है जो बीजेपी को टक्कर दे सके.

सपा-बसपा के साथ

उत्तर प्रदेश में यह सच्चाई भी है कि यूपी में मुसलमानों की बड़ी आबादी होने के बावजूद 2014 के लोकसभा चुनाव में एक भी मुस्लिम संसद नहीं पहुंच सका. राजनीतिक जानकार मानते हैं कि 2014 में सपा-बसपा और कांग्रेस के बीच मुसलमान वोटों के बंटवारे की वजह से राजनीतिक नुकसान हुआ. लेकिन अब इस बार यूपी के दो मजबूत पार्टियां समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन से मुस्लिम वोट पहले की तुलना में कम बंटेगा और गठबंधन के उम्मीदवार को इसका निर्णायक मदद भी मिलेगा.

उत्तर प्रदेश में 19.5 फीसदी आबादी के साथ 38 जिलों और 27 लोकसभा की सीटों पर मुसलमान निर्णायक भूमिका में है.

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