कहीं आप भी तो नहीं खा रहे फैक्ट्री में बने मोमोज ?

किसी छोटे से घर को किराए पर लेकर वहां थोक के भाव मोमोज बनाने का काम किया जाता है. तमाम स्टॉल और ठेले वाले वहीं से बेचने के लिए मोमोज, चटनी और मेयोनीज खरीदकर ले जाते हैं.

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फोटो साभारः Google

नई दिल्लीः आज के समय में स्ट्रीट फूड की डिमांड लगातार बढ़ती जा रही है. लोग घर पर बने खाने से ज्यादा स्ट्रीट फूड पसंद करते कर रहे हैं. बात करें दिल्ली की सड़कों की तो यहां हर तरह का खाना मिलता है. गोलगप्पे, चाट, सैंडविच, लिट्टी, कचौड़ियां, कबाब और भी बहुत कुछ. इन सबके बीच सबसे लोकप्रिय चीजों में से एक है मोमोज, दिल्ली वालों का मोमोज से एक अनूठा लगाव है. आपको मॉल, दफ्तर, छोटे बाजार, पुरानी बस्तियां हर जगह पर मोमोज के स्टॉल मिल जाएंगे. मोमोज के लिए दिल्ली वालों का प्रेम इस कदर है कि इसको खाए बिना वे रह नहीं सकते.

मोमोज की शुरुआत

दिल्ली वालों के पसंदीदा स्ट्रीट फूड मोमोज की शुरुआत तिब्बत से हुई थी और नेपाल के रास्ते यह हिंदुस्तान में आया. भारत में नॉर्थ ईस्ट के बाद दिल्ली ही मोमोज का सबसे बड़ा ठिकाना है, लेकिन पहाड़ों या उत्तर पूर्व में मोमोज का स्वाद चख चुके लोग कहते हैं कि दिल्ली में ज्यादातर जगह मोमोज एक जैसे होते हैं. इसके साथ ही शिकायत होती है कि दिल्ली के मोमोज में ‘वैसा स्वाद’ नहीं आता. इसके पीछे की वजह मजेदार और चौंकाने वाली है. दिल्ली के ज्यादातर मोमोज ‘फैक्ट्री’ में बनाए जाते हैं. आइए बताते हैं इन फैक्ट्री मोमोज के बारे में.

फैक्ट्री मोमोज

जानकारी के लिए बता दें, यहां फैक्ट्री शब्द का मतलब कोई मशीन नहीं है बल्कि एक जगह बनाए गए मोमोज हैं जिन्हें हर दुकानदार खरीद कर ले जाता है. दरअसल दिल्ली में कुछ मोमोज के लिए मशहूर जगहों को छोड़कर ज्यादातर मोमोज बेचने वाले लोग मोमोज खुद से नहीं बनाते हैं. किसी छोटे से घर को किराए पर लेकर वहां थोक के भाव मोमोज बनाने का काम किया जाता है. तमाम स्टॉल और ठेले वाले वहीं से बेचने के लिए मोमोज, चटनी और मेयोनीज खरीदकर ले जाते हैं, जहां मोमोज बनाने और थोक में बेचने का काम होता है उसी को मोमोज फैक्ट्री कहते हैं. सड़क किनारे आपको जितने भी मोमोज के स्टॉल मिलेंगे, उनमें शायद ही कोई खुद से बनाता हो. जो रेस्त्रां और कैफे खुद से मोमोज बनाते हैं उनमें से ज्यादातर अपने मोमोज के लिए काफी प्रसिद्ध हैं.

गुणवत्ता के हिसाब से कीमत

आम तौर पर एक फैक्ट्री दिन भर में 30-40 हजार मोमोज बनाती है जिनकी कीमत उनकी गुणवत्ता के हिसाब से 1.5 से 2 रुपए प्रति मोमोज फुटकर दुकानदारों को बेच देती है. जिसके बाद दुकानदार इन्हें 30-40 रुपये प्रति प्लेट के हिसाब से बेचते हैं, दुकानदार को प्रति प्लेट लगभग दोगुना फायदा होता है. इन स्टॉल की लोकप्रियता का यही कारण है. इतनी कम कीमत के लिए छोटा साइज, कम स्टफिंग यहां तक कि चिकन मोमोज में सोयाबीन मिलाने जैसी तरकीबें अपनाई जाती हैं, जिनका असर सीधे मोमोज के स्वाद पर पड़ता है.

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