तो पीके के तौर पर नितीश कुमार ने अपना उत्तराधिकारी चुन लिया है !

वैसे तो नितीश ने कभी वंशवाद की राजनीति नहीं की लेकिन अगर उनके इकलौते बेटे निशांत कुमार को देखा जाए तो उनके राजनीति में उतरने की संभावना ना के बराबर है. उम्र के 67 वर्ष पूर्ण कर चुके नितीश को तेजस्वी यादव के साथ बदली बिहार की राजनीति में अपनी पार्टी से भी एक ताजा चेहरे की जरूरत महसूस हो रही थी .

पंकज शुक्ला: क्या प्रशांत किशोर को पार्टी में शामिल करके नितीश कुमार ने अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी तैयार कर दिया है. नितीश के इस बयान के बाद कि प्रशांत किशोर भविष्य हैं, यह सवाल और ज्यादा बड़ा हो जाता है. नितीश के बेटे की सियासत से जो दूरी है उसके ख़त्म होने की संभावना ना के बराबर है. वहीं दूसरी तरफ लालू प्रसाद यादव का उत्तराधिकारी बनकर तेजस्वी ने पार्टी संभाल ली है. जानकार मानते हैं कि 67 साल की उम्र पूरी कर चुके नितीश भी अब अपनी तलाश ख़त्म करना चाहते थे और अब पीके के तौर पर कर दी है.

बिहार में तेजस्वी यादव की लोकप्रियता का ग्राफ बहुत तेजी से बढ़ा है. बड़े भाई तेज प्रताप यादव से अन-बन की खबरें सामने आयीं लेकिन अब तेजस्वी का रास्ता साफ़ है. तेजप्रताप ने उनका नेतृत्व स्वीकार कर लिया लगता है, बल्कि यूं कहें कि उन्होंने मान लिया है कि वो राजनीतिक कौशल और व्यक्तित्व में छोटे भाई का मुकाबला नहीं कर सकते. कुल मिलाकर लालू को एक संतुष्ट पिता के तौर पर देखा जा सकता है. जिसे उत्तराधिकारी के हाथों अपनी राजनीतिक विरासत के डूबने का ख़तरा नहीं है. तेजस्वी को नेशनल मीडिया में भी जिस तरह से जगह मिली है वह भी नितीश और उनके सहयोगियों में खीज पैदा करने के लिए काफी है.

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प्रशांत किशोर जिन हालात और जिस मानसिकता के साथ नितीश के पास पहुंचे थे, उसको लेकर एक किवदंती राजनीतिक गलियारों में आम है. यह किस्सा कहता है कि केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद पीके यानि प्रशांत किशोर से अमित शाह से मुलाक़ात करने के लिए कहा गया. पीके पूछते रह गए कि अब आगे उन्हें क्या भूमिका निभानी है मगर अमित शाह के दफ्तर से उन्हें कोई जवाब नहीं मिला. माना यही जाता है भाजपा के रवैये से आहत होकर उन्होंने पटना का रुख किया था. वहां उस वक़्त के धुर मोदी विरोधी महागठबंधन को सत्ता तक पहुंचाने में मदद की. नितीश और लालू प्रसाद यादव के गठबंधन के लिए पीके कितने अहम् रहे यह इन दोनों नेताओं ने उनका सार्वजनिक तौर पर इस्तकबाल करके खुद जाहिर किया. इतना ही नहीं बिहार विकास परिषद् का अध्यक्ष बनाकर उन्हें मंत्री का दर्जा भी महागठबंधन सरकार ने दिया. यह बात दीगर है कि प्रशांत किशोर ने इस ही इस्तीफा दे दिया और अपने पुराने काम में जुट गए.

आज भले नितीश कुमार लालू की आरजेडी से पल्ला छुड़ाकर वापस एनडीए में आ गए हैं मगर वह नरेंद्र मोदी के साथ अभी तक सहज नहीं हो सके हैं. याद रखना चाहिए कि वो एनडीए के पहले बड़े नेता थे जिन्होंने प्रधानमन्त्री पद पर मोदी की दावेदारी का सबसे पहले विरोध किया था. नितीश और प्रशांत किशोर की केमिस्ट्री का अंदाजा जेडीयू के हर ख़ास नेता को है. बताते हैं कि विधानसभा चुनाव के वक़्त प्रशांत ने एक ही शर्त रखी थी कि उनके और मुख्यमंत्री के बीच में तीसरा कोई नहीं होगा. और नितीश ने बदले में उनसे वादा लिया था कि आप जींस टी शर्ट छोड़कर कुर्ता-पायजामा पहनेंगे. जनता दल यूनाइटेड के नेता नहीं बोल रहे हैं लेकिन पीके के सवाल पर वह कहते हैं यह शायद नितीश कुमार के राजनीतिक कैरियर के सबसे बड़े फैसलों में से एक है. उन्हें पार्टी में नंबर दो की हैसियत मिलना तय हुआ है. दशहरे बाद मंत्रिमंडल फेरबदल होगा और प्रशांत किशोर को कैबिनेट मंत्री की शपथ दिलवाई जाएगी. शायद मौजूदा मंत्री श्रवण कुमार की छुट्टी करके उन्हें एडजस्ट किया जाए.

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प्रशांत किशोर बिहार के बक्सर जिले के मूल निवासी हैं. नितीश कुमार को इस वक़्त ऐसे ताजा तरीन चेहरे की जरूरत है जो तेजस्वी यादव के मुकाबले भारी पड़ सके. और नए दौर में पार्टी के लिए ठोस रणनीति बना सके. प्रशांत किशोर से बेहतर च्वाइस उनके पास नहीं थी. नितीश के स्वभाव से उनका स्वभाव मेल खाता है. वह भावनात्मक रिश्ता मुख्यमंत्री के साथ बना चुके हैं जिसके चलते उनपर नितीश ने विश्वास किया है. वैसे तो बिहार और उत्तर प्रदेश वंशवादी राजनीति के लिए बदनाम है. लेकिन नितीश कुमार ने कभी अपने घरवालों को आगे नहीं किया. उनके इकलौते पुत्र इंजीनियर निशांत कुमार राजनीति से कोसों दूर हैं. पिता के शपथ ग्रहण में आखिरी बार उन्हें सार्वजनिक तौर पर देखा गया था. बेहद सरल और सादगीपूर्ण व्यवहार के स्वामी निशांत अध्यात्म में रूचि रखते हैं. वह कभी राजनीति में कदम रखेंगे इसके आसार बहुत कम हैं.

जानकार मानते हैं कि प्रशांत किशोर को जेडीयू में शामिल करते वक़्त नितीश कुमार का बयान कि वह भविष्य हैं, सबकुछ समझने के लिए पर्याप्त है. शरद यादव के अलग होने के बाद फिलहाल जेडीयू में ऐसी एक भी आवाज़ नहीं बची है जो नितीश के फैसले पर उंगली उठा सके. प्रशांत किशोर नितीश के लिए हर लिहाज से उपयोगी हैं. उन्हें भाजपाइयों के साथ काम करने का अनुभव है तो राहुल गांधी कैम्प से जुड़कर वह कांग्रेस की हर मजबूती और कमजोरी से वाकिफ हो चुके हैं. यहां यह भी ध्यान रहे कि प्रशांत किशोर ब्राह्मण हैं और नितीश कुमार के लिए वह जातीय समीकरण में भी फिट बैठते हैं. बिहार के सवर्ण मतदाताओं पर फिलहाल भाजपा की दावेदारी है. जबकि नितीश महादलित और अतिपिछड़े की राजनीति करते हैं. मगर पीके के पार्टी में आ जाने के बाद नितीश के पास सवर्ण वोटों में सेंधमारी का भी हथियार आ गया है. कल को अगर नितीश भाजपा से अलग होते हैं तो पीके उनके लिए सवर्ण वोटरों सकते हैं.

प्रशांत अब अपना सारा कौशल जेडीयू के लिए लगाएंगे बदले में उन्होंने भी अपने भविष्य को लेकर नितीश से सॉलिड कमिटमेंट लिया होगा यह तय है. जाहिर है वह प्योर प्रोफेशनल इंसान हैं और राजनीति में समाज सेवा करने के लिए तो कम से कम नहीं आए हैं.


पंकज शुक्ला
(लेखक राजसत्ता एक्सप्रेस के संपादक  हैं )

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