विश्वजीत भट्टाचार्य: राफेल लड़ाकू विमानों के मुद्दे को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी जमकर उछाल रहे हैं. मोदी सरकार पर उनके आरोपों को फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के आरोपों से भी दम मिला है. राहुल ने मोदी सरकार के प्रति आम लोगों के दिल में शक का कांटा बोने में भी शायद सफलता हासिल की है, लेकिन क्या जिस तरह वीपी सिंह ने बोफोर्स तोप घोटाले का मुद्दा उछालकर राहुल के पिता राजीव गांधी को सत्ता से बेदखल किया था, वैसा ही राहुल भी राफेल के मुद्दे से कर सकेंगे ? इस सवाल का राजनीति के जानकार जो जवाब दे रहे हैं, वो राहुल के लिए उत्साहजनक नहीं हैं. वहीं, कांग्रेस के भीतर भी अपने अध्यक्ष के तौर-तरीकों को लेकर सवाल उठ रहे हैं.
क्या कहते हैं राजनीति के जानकार ?
राफेल खरीद में कथित भ्रष्टाचार मोदी के लिए बोफोर्स जैसा साबित करने में राहुल गांधी, वीपी सिंह जैसे बन सकेंगे ? इस सवाल पर इंडिया टुडे हिंदी के संपादक अंशुमान तिवारी का कहना है कि वीपी सिंह जैसा बनने की अगर राहुल गांधी सोच रहे हैं, तो ये उनकी बड़ी गलती है. वीपी सिंह सरकार के भीतर रहकर बोफोर्स के मुद्दे पर राजीव सरकार के खिलाफ खड़े हुए थे. ऐसे में जनता उनके साथ आ गई थी. जबकि, राहुल विपक्ष में हैं और सौदे के बारे में जनता में उनकी स्वीकार्यता उतनी नहीं बन सकती, जितनी वीपी सिंह की थी.
पीटीआई-भाषा के संपादक निर्मल पाठक भी अंशुमान तिवारी से एकमत हैं. उनका कहना है कि अगर राहुल गांधी सोच रहे हैं कि वो वीपी सिंह की तरह रक्षा सौदे में कथित घोटाले का मुद्दा उठाकर मोदी सरकार को पटक लेंगे, तो ऐसा होना मुश्किल है. निर्मल पाठक तर्क देते हैं कि वीपी सिंह ने राजीव सरकार से बोफोर्स मुद्दे पर इस्तीफा देकर अभियान चलाया था. वो सरकार में मंत्री रहे थे. इस वजह से लोगों को लगता था कि वीपी को अंदरखाने का सबकुछ पता होगा और राजीव गांधी ने तोप सौदे में दलाली खाई है.
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नवभारत टाइम्स लखनऊ और एनसीआर संस्करणों के स्थानीय संपादक सुधीर मिश्र का कहना है कि राहुल और वीपी सिंह की तुलना करना बेमानी है. वीपी सिंह एक राज परिवार से थे. बावजूद उसके जब राजीव गांधी की सरकार छोड़ी तो ‘राजा नहीं फकीर है’ के नारे के साथ वो कांग्रेस विरोधी सियासत का केंद्र बिंदु बने. सुधीर मिश्र का कहना है कि वीपी सिंह ने जब राजीव सरकार के खिलाफ बोफोर्स सौदे में दलाली की जंग शुरू की, तो उनपर कोई मुकदमे नहीं थे. जबकि, राहुल गांधी पर नेशनल हेराल्ड मसले की छाया है. वो जमानत पर हैं. ऐसे में वीपी और राहुल के बीच तुलना कतई नहीं की जा सकती.
जनता की आवाज बन नहीं पा रहे राहुल
राफेल के मुद्दे को राहुल लगातार उठा रहे हैं, लेकिन उनके इस मुद्दे के पीछे आम लोगों से जुड़े असल मुद्दे खो गए हैं. इसे लेकर कांग्रेस के भीतर भी सवाल उठ रहे हैं. यूपी कांग्रेस के एक बड़े नेता का कहना है कि बीते दिनों पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों को लेकर कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष के भारत बंद को अच्छा जनसमर्थन मिला, लेकिन फिर राहुल गांधी इस मुद्दे को भुला बैठे. बीते तीन-चार दिन से उन्होंने फिर राफेल को मुद्दा बना लिया है और इस बीच पेट्रोल-डीजल की बढ़ी कीमत का मुद्दा हाशिए से बाहर हो गया है. कांग्रेस के इस नेता के मुताबिक आम लोगों से जुड़ा मुद्दा उठाकर उसे छोड़ना ठीक नहीं है, लेकिन करना वही है, जो कांग्रेस आलाकमान तय करता है.
इंडिया टुडे हिंदी के संपादक अंशुमान तिवारी का कहना है कि राहुल जिस तरह राफेल का मुद्दा उठा रहे हैं, वो राजनीतिक तौर पर लड़ी जा रही जंग में बिल्कुल ठीक है. अंशुमान तिवारी का कहना है कि आम लोगों से जुड़े मुद्दों पर सरकार के पास जवाब होता है, लेकिन जब रक्षा सौदे जैसे मामलों में भ्रष्टाचार की बात हो, तो उसके पास जवाब की कमी हो जाती है. अंशुमान तिवारी के मुताबिक मोदी सरकार जिस तरह राफेल पर जवाब नहीं दे पा रही है, वो साबित करता है कि राहुल का राजनीतिक वार सही दिशा में जा रहा है. साथ ही आम लोगों में मोदी सरकार की साफ छवि को राहुल गांधी ने छिन्न-भिन्न करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी है. इससे भी सरकार सकते में है और उसे पलटवार के अलावा जवाब नहीं सूझ रहा है.
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पीटीआई-भाषा के संपादक निर्मल पाठक और नवभारत टाइम्स के स्थानीय संपादक सुधीर मिश्र का इससे उलट मानना है. दोनों वरिष्ठ पत्रकार ये मानते हैं कि आम लोगों से जुड़े मुद्दे कांग्रेस को ज्यादा फायदा पहुंचा सकते हैं. ऐसे में राहुल को अगर 2019 में मोदी के लिए मुश्किल खड़ी करनी है, तो उन्हें सरकारी स्कीम का फायदा आम लोगों तक पहुंचाने में मोदी सरकार की नाकामी और महंगाई जैसे मुद्दों को हथियार बनाना चाहिए. वो बीच-बीच में आम लोगों की दिक्कत उठाते हैं, लेकिन घूम-फिरकर उसी राफेल पर आ जाते हैं जिसका महंगाई के दौर में आम जनता से कोई लेना-देना नहीं है.
राहुल का ऐसे काउंटर करने की तैयारी में बीजेपी
इस बीच, सूत्रों के मुताबिक राफेल मुद्दे पर राहुल के हमले का काउंटर करने का पूरा प्लान बीजेपी तैयार कर रही है. सूत्रों का कहना है कि राफेल का सौदा रद्द नहीं होगा. वजह ये है कि इस विमान के लिए समझौता होते ही करीब 9000 करोड़ रुपए फ्रांस को दिए जा चुके हैं, लेकिन संसद के शीतकालीन सत्र में मोदी सरकार पूरे मसले पर श्वेत पत्र ला सकती है. इसके अलावा आने वाले दिनों में कुछ ऐसे खुलासे किए जा सकते हैं, जिनसे राहुल और कांग्रेस को दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है.