आखिर क्यों पीएम मोदी से नाखुश है गुजरात की जनता?

गुजरात को अपना गढ़ मानने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से वहां की जनता खुश नहीं है. दरअसल. मध्य गुजरात में पीएम ने स्टैच्यू ऑफ यूनिटी का निर्माण तो करा दिया पर जो वहां की आदिवासी जनता से वादे किए थे उसे सरकार नहीं निभा सकी है. आदिवासी समुदाय में बीजेपी के खिलाफ रोष है. 100 आदिवासियों पर केस करना भी एक कारण है. जिसका असर लोकसभा चुनाव के समय छोटा उदयपुर लोकसभा सीट से देखने को मिल सकता है.

वहीं, स्टैच्यू ऑफ यूनिटी इन आदिवासी किसानों को बीजेपी के अधूरे वादों की याद दिला रहा है. सरकार की ओर से किसानों को उनकी ली गई जमीन के सामने ही दूसरी जमीन देने की घोषणा की गई थी, लेकिन वो जमीन अब तक किसानों को नहीं मिल पाई है. सरदार सरोवर बांध की वजह से कई आदिवासी किसानों को यहां से विस्थापित किया गया था. वो अब भी अपनी मांग को लेकर सरकार के सामने अड़े हुए हैं. खुद की जमीन को वापस पाने के लिए किसान बार-बार कलेकटर के पास अपनी मांग लेकर पहुंचे, लेकिन स्थानीय नेताओं से किसी भी तरह की कोई मदद न मिलने की वजह से आदिवासियों का गुस्सा सरकार के साथ साथ स्थानीय नेताओं के खिलाफ भी है.

इसके साथ ही स्टैच्यू ऑफ यूनिटी जब बन रहा था, उस वक्त आदिवासियों से वादा किया गया था कि इसके बनने के बाद जो रोजगार खड़ा होगा उन जगहों पर भी आदिवासी युवाओं को रोजगार दिया जाएगा. यह वादा भी बाद में पूरा नहीं हुआ और सारा काम एजेंसी को दिया गया और एजेंसी ने आदिवासियों को नहीं बल्कि बाहरी लोगों को काम दिया. इस वजह से भी आदिवासी सरकार से काफी खफा हैं.

गुजरात सरकार ने The Provisions of the Panchayats ACT 1996 के कानून का सख्ती से पालन नहीं किया. इसके तहत ग्राम सभा पर सख्ती नहीं की जा सकती है. ग्राम सभा के तहत संस्कृति, समुदाय, आदिवासी रीति रिवाज के तहत जो फैसला लिया जाता है वो स्थानीय प्रशासन को मानना पड़ता है. इस नियम का पालन भी स्थानीय प्रशासन के जरिए नहीं किया जा रहा है. साथ ही स्टैच्यू ऑफ यूनिटी की आय का 25 प्रतिशत हिस्सा ग्राम सभा को देने का फैसला भी इसी के जरिए किया गया था. जिसका भी प्रशासन पालन नहीं कर रहा है.

इस पूरी जगह को टूरिज्म के तौर पर विकसित करने का प्रोजेक्ट के तहत यहां हेलिकॉप्टर सर्विस भी शुरू की गई. लगातार हेलिकॉप्टर की आवाज आसपास के 7 गांव के स्कूलों में आती रहती है. इसके चलते स्कूल के बच्चे पढ़ाई नहीं कर पाते हैं. यही नहीं, इस पूरी जगह को डेवलप करने और यहां टूरिजम को विकसित करने के उद्देश से सरकार ने यहां अलग-अलग प्रोजेक्ट यहां पर रखे थे. इसमें करीब 72 गांवों की जमीन का अधिग्रहण होना है. इससे अब भी आदिवासी लोगों में भारी गुस्सा है.

वहीं आदिवासियों का तडवी समाज इस बार भाजपा से काफी नाराज है, तडवी समाज शुरू से भाजपा के साथ ही रहा है. लेकिन जब आदिवासी आंदोलन किया गया तो तडवी समाज के करीब 100 लोगों पर केस दर्ज किए गए. छोटा उदयपुर के आसपास के इलाके में बड़े पैमाने पर तडवी समाज बसता है. तडवी के अलावा राठवा समाज भी यहां बड़े पैमाने पर बसता है. जबकि इस बार बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों ने राठवा समाज के नेता को टिकट दिया है. इस वजह से दोनों के बीच वोटों का बंटवारा हो सकता है.

कांग्रेस ने अपनी पहली ही लिस्ट में छोटा उदयपुर के रणजीत राठवा को टिकट दिया था. इस वजह से उन्हें प्रचार में काफी वक्त मिल गया है. जबकि भाजपा के मौजूदा सासंद रामसिंह राठवा के सामने काफी विरोध था. जिस वजह से बीजेपी नामांकन दाखिल करने के आखरी दिन गीताबेन राठवा का नाम घोषित किया है. रामसिंह राठवा के विरोध का खामियाजा गीताबेन राठवा को भी चुकाना पड़ सकता है. गीताबेन राठवा ने अब तक सिर्फ जिला पंचायत का चुनाव लड़ा है. ऐसे में लोकसभा चुनाव भी उनके लिए भी खेल का नया मैदान है. इस वजह से उनका ज्यादातर दारोमदार यहां के भाजपा के स्थानीय संगठन पर है.

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