भारत की राजनीति में अटल बिहारी वाजपेयी… एक ऐसा नाम है जो कभी भी भुलाया नहीं जा सकता है. एक पत्रकार, कवि और राजनेता (पूर्व प्रधानमंत्री) के रूप में अटल बिहारी हमेशा याद रहते हैं. अटल जी एक ऐसे नेता थे जिसकी बात विपक्ष के नेता भी एक बार में मान लेते थे. लेकिन एक बार अटल जी ने आज के PM नरेंद्र मोदी को राजधर्म की याद दियाई थी.
दरअसल, 2002 गुजरात दंगों के बाद का समय था जब देशभर में भाजपा सरकार की किरकिरी हो रही थी. गुजरात सरकार पर आरोप लग रहे थे कि उसने दंगाईयों को रोकने की कोशिश नही की थी. राजनीतिक खेमों में ये सरगर्मी थी कि क्या प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ कोई कदम उठाएंगे या नही.
मुख्यमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी की आलोचनाएं होने के पीछे कई वजह थी. एक तो ये भी थी कि जब गुजरात के एक मुस्लिम नेता ने उनसे मदद मांगने के लिए फोन किया था तो मोदी ने उलटा उन्हीं को सुना दिया था और कथित रूप से पुलिस को भी कोई एक्शन लेने से रोक दिया था.
गुजरात दंगों से न केवल भाजपा सरकार बल्कि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की छवि को भी नुकासन हुआ था. वो कई बार खुद को पार्टी से ज्यादा मॉडरेट होने की बात कह चुके थे. अंग्रेजी पत्रिका फ्रंटलाइन के मुताबिक 1996 में वामदलों पर निशाना साधते हुए उन्होने कहा था, “मैं मॉडरेट हूं पार्टी (भाजपा) नही है, मैं धर्मनिरपेक्ष हूं लेकिन पार्टी नही है.” लेकिन अब उन पर ये साबित करने का दबाव था और ये तभी साबित होता जब वो नरेंद्र मोदी को मुख्यमंत्री के पद से बर्खास्त करते.
द अन्टोल्ड वाजपेयी किताब में बताया गया हैं कि किस तरह दंगों के बाद हुई एक प्रैस कांफ्रेंस में वाजपेयी ने नरेंद्र मोदी को उनका राजधर्म निभाने की बात कही थी.
किताब के लेखक एनपी ने अपनी किताब मे बताया है कि, जब प्रैस कांफ्रेंस के दौरान एक पत्रकार ने अटल बिहारी वाजपेयी से पूछा कि वो मोदी को क्या सलाह देना चाहेंगे, तो अटल ने कहा कि मोदी को अपना राजधर्म निभाना चाहिए, राजा और शासक कभी जन्म, जात और धर्म को लेकर लोगों के बीच भेदभाव नही करता है. लेकिन उसके बाद जो फीडबैक मोदी ने दिया उसने न केवल अटल को बल्कि वहां मौजूद पत्रकारों को भी हैरान कर दिया. मोदी ने अटल को कुछ और कहने से रोकने के लिए कहा, “वही तो कर रहे हैं साहिब.” जिसके बाद अटल चुप पड़ गए.
किताब में इस बात का भी जिक्र है कि किस तरह जिस मोदी को अटल ने गुजरात के मुख्यमंत्री पद तक पहुंचाया था वो अब उन्हें हटाना चाहने लगे थे. दरअसल 2001 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल के कामकाज के तरीके से आने वाले चुनाव में हार के डर से अटल वहां के मुख्यमंत्री को बदलना चाहते थे और इसके लिए खुद उन्होने ही नरेंद्र मोदी से बातचीत की थी और इसके लिए उन्हें मनाया भी था.
लेकिन गुजरात दंगों के चलते अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक अटल सरकार को आलोचनाओं का शिकार होना पड़ा था जिसकी वजह से अटल अब मोदी को हटाने का मन भी बना चुके थे. किंतु मोदी की अाडवानी से करीबी ने उन्हें बर्खास्त होने से बचाने में अहम भुमिका निभाई.