बाबर की मस्जिद ने खूब कराई सियासत, 490 साल बाद भी नहीं हो सका है फैसला

Babar's mosque has not done enough after 490 years

विश्वजीत भट्टाचार्य: अयोध्या में मुगल बादशाह बाबर के नाम पर बनवाई गई एक मस्जिद ने सियासत को 490 साल बाद भी गरमा रखा है. मस्जिद को हालांकि उग्र हिंदुओं ने 1992 में ढहा दिया, लेकिन जमीन को लेकर हिंदुवादी संगठनों और मुसलमानों के बीच कानूनी जंग अभी चल रही है.

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दरअसल, ये सारा मामला साल 1528 में शुरू हुआ. जब बाबर के सिपहसालार मीर बाकी ने अयोध्या में ऐसी जगह मस्जिद बनवा दी, जिसे हिंदू भगवान राम का जन्मस्थान मानते थे. कहा जाता है कि वहां एक मंदिर था, जिसे तोड़कर मीर बाकी ने तीन गुंबदों वाली मस्जिद बनवाई. जिसे बाबर के नाम पर बाबरी मस्जिद कहा जाने लगा.

इस मस्जिद के बनने के साथ ही हिंदू लगातार यहां कब्जा करने की कोशिश करते रहे. साल 1853 में जन्मस्थान पर कब्जा करने के लिए हिंसा के दौरान पहली बार अयोध्या और फैजाबाद में मुसलमानों को निशाना बनाया गया. अंग्रेजों ने किसी तरह हालात काबू में किए और 1859 में विवादित स्थल के चारों ओर बाड़ लगवा दी. परिसर के भीतर मुसलमानों और बाहरी हिस्से में हिंदुओं को प्रार्थना करने की मंजूरी दी गई.

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1949 में 22/23 सितंबर की दरम्यानी रात बाबरी मस्जिद में भगवान राम की मूर्तियां रखी मिलीं. आरोप है कि महंत रामचंद्र दास और उनके कुछ साथी इन मूर्तियों को लेकर पहुंचे थे. मुसलमानों ने इस पर अदालत में मुकदमा कर दिया. जबकि, सरकार ने शांति भंग की आशंका पर मस्जिद में ताला लगा दिया.

बाबरी मस्जिद पर ताला लगने के बाद ही मामले ने राजनीतिक रंग लिया. 1984 में विश्व हिंदू परिषद ने राम जन्मभूमि पर मंदिर बनवाने के लिए समिति बनाई और इस अभियान का नेतृत्व बीजेपी के तब प्रमुख नेताओं में शुमार लालकृष्ण आडवाणी ने संभाला. हालात को हाथ से निकलता देख कांग्रेस भी मंदिर की राजनीति में कूदी और 1986 में फैजाबाद के डीएम ने बाबरी मस्जिद के ताले खोलने का आदेश दिया और हिंदुओं ने अंदर पूजा-पाठ शुरू किया. इसके खिलाफ मुसलमानों ने बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति बना ली.

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1989 में विश्व हिंदू परिषद ने विवादित स्थल पर मंदिर निर्माण के लिए नींव रखी. फिर आंदोलन उग्र हुआ और 1990 में यूपी में मुलायम सिंह सरकार के दौरान कुछ कारसेवक विवादित ढांचे पर चढ़ गए. इस घटना के दूसरे दिन अयोध्या में कारसेवकों पर पुलिस ने फायरिंग की. जिसमें कुछ कारसेवकों की मौत हुई. 1992 में 6 दिसंबर को विश्व हिंदू परिषद, बीजेपी और शिवसेना ने कारसेवा का एलान किया. कारसेवा के दौरान ही बड़ी भीड़ ने बाबरी मस्जिद पर हमला किया और उसे दोपहर होते-होते मिट्टी से मिला दिया.

बाबरी मस्जिद गिरने के बाद देशभर में दंगे हुए. इसमें 2000 से ज्यादा लोग मारे गए. फिर 1993 में दाऊद इब्राहिम गैंग ने मुंबई में सीरियल ब्लास्ट किए. जिसमें 250 से ज्यादा लोगों की जान गई. फरवरी 2002 में अयोध्या से लौट रहे कारसेवकों से भरी ट्रेन में गुजरात के गोधरा में आग लगा दी गई. 58 लोगों की जलकर मौत होने के बाद गुजरात में भीषण दंगे हुए और हजारों लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा.

साल 2003 के अप्रैल महीने में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एएसआई से विवादित स्थल पर मंदिर के अवशेष की जांच के लिए कहा. एएसआई ने जून महीने तक खुदाई और जांच के बाद कोर्ट को बताया कि जमीन के नीचे मंदिर से मिलते-जुलते अवशेष मिले. अप्रैल 2004 में मंदिर को लेकर सियासत फिर गरमाई. जब, लालकृष्ण आडवाणी ने विवादित जगह जाकर रामलला की पूजा की. इसके बाद साल 2005 के जुलाई महीने में पांच आतंकियों ने विवादित परिसर पर हमला बोला. ये सभी मौके पर ही मारे गए.

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2017 में मुस्लिम पक्ष की ओर से वकील और कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि अयोध्या मसले पर सुनवाई को 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद शुरू करना चाहिए, लेकिन अदालत ने उनकी ये मांग ठुकरा दी. बीजेपी ने इस पर कांग्रेस को निशाना बनाया और आरोप लगाया कि वो मुसलमानों के साथ खड़ी है. सिब्बल बाद में इस मामले से अलग हो गए.

जुलाई 2005 में ही इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बाबरी मस्जिद गिराने के दौरान आडवाणी पर भड़काऊ भाषण देने के मामले में केस चलाने को कहा. इससे पहले आडवाणी को बरी कर दिया गया था. अप्रैल 2006 में कांग्रेस नीत केंद्र की यूपीए सरकार ने लिब्रहान आयोग में लिखकर दिया कि सुनियोजित साजिश के तहत बाबरी मस्जिद को ढहाया गया. जिसमें बीजेपी, आरएसएस, बजरंग दल और शिवसेना शामिल थे.

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बीते दिनों आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत ने अयोध्या में मंदिर के लिए केंद्र से कानून बनाने की मांग की. जबकि, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने 28 अक्टूबर 2018 को कहा कि सुप्रीम कोर्ट को मंदिर के मसले पर जल्द फैसला सुना देना चाहिए. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रहते दीपक मिश्रा की खंडपीठ ने व्यवस्था दी थी कि अयोध्या का मसला टाइटल सूट यानी जमीनी विवाद है. जिस पर मौजूदा चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली तीन जजों की बेंच अब सुनवाई कर रही है.

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